भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भगवान के डाकिए / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Aditi kailash (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" | |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatBaalKavita}} | |
− | + | <poem> | |
पक्षी और बादल, | पक्षी और बादल, | ||
− | |||
ये भगवान के डाकिए हैं | ये भगवान के डाकिए हैं | ||
− | |||
जो एक महादेश से | जो एक महादेश से | ||
− | |||
दूसरें महादेश को जाते हैं। | दूसरें महादेश को जाते हैं। | ||
− | |||
हम तो समझ नहीं पाते हैं | हम तो समझ नहीं पाते हैं | ||
− | |||
मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ | मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ | ||
− | |||
पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ | पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ | ||
− | |||
बाँचते हैं। | बाँचते हैं। | ||
− | |||
हम तो केवल यह आँकते हैं | हम तो केवल यह आँकते हैं | ||
− | |||
कि एक देश की धरती | कि एक देश की धरती | ||
− | |||
दूसरे देश को सुगंध भेजती है। | दूसरे देश को सुगंध भेजती है। | ||
− | |||
और वह सौरभ हवा में तैरते हुए | और वह सौरभ हवा में तैरते हुए | ||
− | + | पक्षियों की पाँखों पर तिरता है। | |
− | पक्षियों | + | |
− | + | ||
और एक देश का भाप | और एक देश का भाप | ||
− | |||
दूसरे देश में पानी | दूसरे देश में पानी | ||
− | |||
बनकर गिरता है। | बनकर गिरता है। | ||
+ | </poem> |
15:54, 8 मई 2015 के समय का अवतरण
पक्षी और बादल,
ये भगवान के डाकिए हैं
जो एक महादेश से
दूसरें महादेश को जाते हैं।
हम तो समझ नहीं पाते हैं
मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ
पेड़, पौधे, पानी और पहाड़
बाँचते हैं।
हम तो केवल यह आँकते हैं
कि एक देश की धरती
दूसरे देश को सुगंध भेजती है।
और वह सौरभ हवा में तैरते हुए
पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।
और एक देश का भाप
दूसरे देश में पानी
बनकर गिरता है।