भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूरज दादा / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=लाला जगदल पुरी
+
|रचनाकार=लाला जगदलपुरी
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

23:54, 8 मई 2015 के समय का अवतरण

सूरज दादा, चमको तुम।

नया सवेरा लाते रोज,
उजियाला फैलाते रोज,
जहाँ कहीं भी रहते लोग,
रखते सबको तुम्हीं निरोग,
अच्छे लगते हमको तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।

आसमान में रहते हो,
सबकी बाँहें गहते हो,
रोज समय पर आते हो,
रोज समय पर जाते हो,
रोज भगाते तम को तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।

परहित में तप करते हो,
नहीं किसी से डरते हो,
तुम स्वभाव से बड़े प्रखर,
कहती गरमी की दोपहर,
नहला देते श्रम को तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।