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"मैं ऐसा ख़ूबसूरत रंग हूँ दीवार का अपनी / ज़फ़र गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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09:26, 17 मई 2015 के समय का अवतरण

मैं ऐसा ख़ूबसूरत रंग हूँ दीवार का अपनी
अगर निकला तो घरवालों की नादानी से निकलूंगा

मैं ज़फ़र ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में
अपनी घरवाली को एक कंगन दिलाने के लिए

नेज़े पे रखके और मेरा सर बुलंद कर
दुनिया को इक चिराग़ तो जलता दिखाई दे

किसी मासूम बच्चे के तबस्सुम में उतर जाओ
तो शायद ये समझ पाओ, ख़ुदा ऐसा भी होता है