भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चतुष्टयो / अंकावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatMaithiliRachna}}
 
{{KKCatMaithiliRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
चतुयँग-
 +
 
‘कृत’ युग विदित विशुद्ध योग हित, भोग योग - हित ‘त्रेता’
 
‘कृत’ युग विदित विशुद्ध योग हित, भोग योग - हित ‘त्रेता’
 
‘द्वापर’ योग भोग - हित, ‘कलियुग’ रहइछ केवल भोक्ता
 
‘द्वापर’ योग भोग - हित, ‘कलियुग’ रहइछ केवल भोक्ता
पंक्ति 25: पंक्ति 27:
 
नाम कलिक द्वापरक यजन, त्रेताक ध्यान - सन्धान
 
नाम कलिक द्वापरक यजन, त्रेताक ध्यान - सन्धान
 
स्थितप्रज्ञ रहि गुणातीत थिति, कृत युग कृती महान
 
स्थितप्रज्ञ रहि गुणातीत थिति, कृत युग कृती महान
 +
 +
चतुर्वेद-
 +
 +
साम पद्य, यजु गद्य, वेद ऋक चम्पू उभय विधान
 +
विदित चतुर्थ अथर्व मुक्त स्वच्छन्द वृत्त अनुमान
 +
साम साम, यजु दाम, दण्ड ऋक्, वेद अथर्व विभेद
 +
जीवन नीतिक विदित चारु चारु विधि सिद्धि अभेद
 +
ऋक् प्रभात, मध्याह्न यजुष् सन्ध्या सामक प्रतिरूप
 +
निशा निशीथ अथर्व श्रुतिक अहनिस ओंकार अनूप।।
 +
 +
अर्थ-वर्ण ओ वाणी-
 +
 +
अभिहित लक्षित व्यंजित पुनि तात्पर्य संगता वाणी वाचा
 +
संवृत विवृत स्पृष्ट उपमा वर्णक विषमा कत ढाँचा
 +
गिरा चतुर्गुण रूप अनूपा परा, अपर पश्यन्ती
 +
अनाहता मध्यमा मुनि मता वैखरि विखरि स्फुरन्ती
 +
 +
वर्णाश्रम -
 +
 +
ब्रह्मचर्य गार्हस्थ्य वानप्रस्थो चतुर्थ संन्यास
 +
विप्र क्षत्र विश शूद्र रचित वर्णाश्रम सृष्टि विकास
 +
 +
चतुर्धाम -
 +
 +
अटक-कटक धरि, हिमगिरि-तट सागर-अंचल धरि व्याप
 +
एक भारती-भूमि, जकर कण-कण मे तीर्थ कलाप
 +
तदपि चतुर्दिश सीमा पर सीमापति पीठासीन
 +
देव विराजित छथि हरि-हर युग - युग सँ नित्य नवीन
 +
अछि प्राची सीमा, सनाथ जत जगन्नाथ रथ-रूढ़
 +
दक्षिण रामेश्वरम् स्वयम् छथि दक्ष रक्षके गूढ़
 +
पाश्चात्यक वात्याक रोधके जतय द्वारकानाथ
 +
उत्तरखण्ड अखण्ड बनल बदरी - केदार सनाथ
 +
राष्ट्र-धर्म केर, काल-कर्म केर चारु चिरन्तन धारा
 +
चतुर्धाम मठ शंकर - योजित संस्कृति प्रकृति - उदारा
 +
--- --- ---
 +
जयतु चतुर्मुख चतुर्वद चतुराश्रम वर्ग - चतुष्क
 +
चतुर्मुखी चतुरस्र चतुर्दश करथु सरस रस शुष्क
 +
 
</poem>
 
</poem>

12:52, 20 मई 2015 के समय का अवतरण

चतुयँग-

‘कृत’ युग विदित विशुद्ध योग हित, भोग योग - हित ‘त्रेता’
‘द्वापर’ योग भोग - हित, ‘कलियुग’ रहइछ केवल भोक्ता
नीति-रीति ‘कृत’ धर्म - समाहित, नीति धर्म - मत ‘त्रेता’
धर्म नीति - मत ‘द्वापर’, ‘कलियुग’ कूट -नीतिहि क नेता
‘कृत’ मनुजत्व शुद्ध देवत्व, देव मानबे ‘त्रेता’
‘द्वापर’ दनुज मनुज बनइछ, ‘कलि’ मनुजे दनुज अचेता
‘कलि’ सूतल आलस्य - जडित्रत, ‘द्वापर’ तन्द्रा सपनाइछ
‘त्रेता’ अभ्युत्थान - शील, ‘कृत’ जाग्रत् जगत जुड़ाइछ
सत्य सभक जीवनमे जेहि छन, ने आलस्य न तन्द्रा
गुणातीत मन - वचन सत्य घन, कृत्य रहित - छल-छन्दा
सत्ययुगक थिक सत् स्वभाव ई, पुनि त्रेताक विचारे
धर्म तत्त्व रुचि प्रचुर, अघहि लघु, मर्यादित व्यवहारे
द्वापर राजस तुलित अनृत - ऋत, भौतिक आत्मिक ध्याने
कलिक कलह आकुल जीवन, तामस गुन दोष्ज्ञ निधाने
विदित चतुयुँग जीवन-कल्पक, अवधि विदित अति स्वल्प
श्रेयक साधन प्रेय - पूर्ण, कर्तव्यक ली संकल्प
नाम कलिक द्वापरक यजन, त्रेताक ध्यान - सन्धान
स्थितप्रज्ञ रहि गुणातीत थिति, कृत युग कृती महान

चतुर्वेद-

साम पद्य, यजु गद्य, वेद ऋक चम्पू उभय विधान
विदित चतुर्थ अथर्व मुक्त स्वच्छन्द वृत्त अनुमान
साम साम, यजु दाम, दण्ड ऋक्, वेद अथर्व विभेद
जीवन नीतिक विदित चारु चारु विधि सिद्धि अभेद
ऋक् प्रभात, मध्याह्न यजुष् सन्ध्या सामक प्रतिरूप
निशा निशीथ अथर्व श्रुतिक अहनिस ओंकार अनूप।।

अर्थ-वर्ण ओ वाणी-

अभिहित लक्षित व्यंजित पुनि तात्पर्य संगता वाणी वाचा
संवृत विवृत स्पृष्ट उपमा वर्णक विषमा कत ढाँचा
गिरा चतुर्गुण रूप अनूपा परा, अपर पश्यन्ती
अनाहता मध्यमा मुनि मता वैखरि विखरि स्फुरन्ती

वर्णाश्रम -

ब्रह्मचर्य गार्हस्थ्य वानप्रस्थो चतुर्थ संन्यास
विप्र क्षत्र विश शूद्र रचित वर्णाश्रम सृष्टि विकास

चतुर्धाम -

अटक-कटक धरि, हिमगिरि-तट सागर-अंचल धरि व्याप
एक भारती-भूमि, जकर कण-कण मे तीर्थ कलाप
तदपि चतुर्दिश सीमा पर सीमापति पीठासीन
देव विराजित छथि हरि-हर युग - युग सँ नित्य नवीन
अछि प्राची सीमा, सनाथ जत जगन्नाथ रथ-रूढ़
दक्षिण रामेश्वरम् स्वयम् छथि दक्ष रक्षके गूढ़
पाश्चात्यक वात्याक रोधके जतय द्वारकानाथ
उत्तरखण्ड अखण्ड बनल बदरी - केदार सनाथ
राष्ट्र-धर्म केर, काल-कर्म केर चारु चिरन्तन धारा
चतुर्धाम मठ शंकर - योजित संस्कृति प्रकृति - उदारा
--- --- ---
जयतु चतुर्मुख चतुर्वद चतुराश्रम वर्ग - चतुष्क
चतुर्मुखी चतुरस्र चतुर्दश करथु सरस रस शुष्क