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"वीरों का कैसा हो वसंत / सुभद्राकुमारी चौहान" के अवतरणों में अंतर

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प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
 
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सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
 
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का हो कैसा वसन्त
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वीरों का कैसा हो वसंत
  
 
फूली सरसों ने दिया रंग
 
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वधु वसुधा पुलकित अंग अंग;
 
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है वीर देश में किन्तु कंत
 
है वीर देश में किन्तु कंत
वीरों का हो कैसा वसन्त
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भर रही कोकिला इधर तान
 
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है रंग और रण का विधान;
 
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मिलने को आए आदि अंत
 
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का हो कैसा वसन्त
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गलबाहें हों या कृपाण
 
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हो रसविलास या दलितत्राण;
 
हो रसविलास या दलितत्राण;
 
अब यही समस्या है दुरंत
 
अब यही समस्या है दुरंत
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कह दे अतीत अब मौन त्याग
 
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ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;
 
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;
 
बतला अपने अनुभव अनंत
 
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हल्दीघाटी के शिला खण्ड
 
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राणा ताना का कर घमंड;
 
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दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
 
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
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भूषण अथवा कवि चंद नहीं
 
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है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं;
 
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फिर हमें बताए कौन हन्त
 
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वीरों का हो कैसा वसन्त
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वीरों का कैसा हो वसंत
 
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12:24, 8 जून 2015 का अवतरण

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो वसंत

फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग;
है वीर देश में किन्तु कंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान;
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का कैसा हो वसंत

गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण;
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का कैसा हो वसंत

कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;
बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का कैसा हो वसंत

हल्दीघाटी के शिला खण्ड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड;
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं;
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का कैसा हो वसंत