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"सर्द रातों में भी काँपते काँपते / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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मुफ़लिसी चल पड़ी हाँफते हाँफते | मुफ़लिसी चल पड़ी हाँफते हाँफते | ||
चार पैसों की ख़ातिर वह बीमार माँ | चार पैसों की ख़ातिर वह बीमार माँ | ||
− | जा रही है | + | जा रही है कहीं खाँसते खाँसते |
खा के दिन में भी सोयें, तो काटें कई | खा के दिन में भी सोयें, तो काटें कई | ||
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सूद के बदले जबरन मवेशी ही वह | सूद के बदले जबरन मवेशी ही वह | ||
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खाइयाँ नफ़रतों की बढ़ीं इस क़दर | खाइयाँ नफ़रतों की बढ़ीं इस क़दर | ||
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नाफ़ में जिसकी केसर हो आहू 'रक़ीब' | नाफ़ में जिसकी केसर हो आहू 'रक़ीब' | ||
− | थक | + | थक गया है बहुत ढूँढते ढूँढते |
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10:42, 9 जून 2015 के समय का अवतरण
सर्द रातों में भी काँपते काँपते
मुफ़लिसी चल पड़ी हाँफते हाँफते
चार पैसों की ख़ातिर वह बीमार माँ
जा रही है कहीं खाँसते खाँसते
खा के दिन में भी सोयें, तो काटें कई
रात भी भूक से जागते जागते
सूद के बदले जबरन मवेशी ही वह
खोलकर, ले गया हाँकते हाँकते
खाइयाँ नफ़रतों की बढ़ीं इस क़दर
मुद्दतें लग गयीं पाटते पाटते
फ़लसफ़ा ज़िंदगी का बयाँ कर गया
एक दर्ज़ी बटन टाँकते टाँकते
लफ़्ज़ "माँ" सुन के टीचर चली आई है
छोड़कर कापियाँ जाँचते जाँचते
दौलते इल्म से वक़्त कट जाएगा
रात-दिन मुफ़्त में बाँटते बाँटते
नाफ़ में जिसकी केसर हो आहू 'रक़ीब'
थक गया है बहुत ढूँढते ढूँढते