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"कउन बाबू के बगिया लगावल, जलथल हरियर हे / मगही" के अवतरणों में अंतर

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भइया, चोरवा हइ सुकुमार फुलुक<ref>शिथिल, ढीला</ref> डोरी बाँधिहऽ, सोबरन साँटि छुइह हे॥6॥
 
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16:13, 11 जून 2015 के समय का अवतरण

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कउन बाबू के बगिया लगावल, जलथल हरियर<ref>हरा-भरा</ref> हे।
ललना, कवन बाबू हथि<ref>है</ref> रखवार, कउन चोर चोरी कयलन हे॥1॥
बाबा मोरा बगिया लगावल, जलथल हरियर हे।
ललना, मोरा भइया हथि रखवार, साहेब चोर चोरी कयलन हे॥2॥
एक फर<ref>फल</ref> तोड़ले दोसर फर, अउरो तेसर फर हे।
ललना, जागि पड़ल रखवार, दउना<ref>एक प्रकार का पौधा, जिसकी पत्तियों से उत्कट और कड़वी सुगंध आती है, दौना</ref> डारे बाँधल हे॥3॥
सोबरन<ref>सुवर्ण, सोना</ref> के साँटी<ref>छड़ी</ref> चोरवा के मारल, रेसमे डोरो बाँधल॥4॥
घरवा से इकसल<ref>निकली</ref> जचा रानी, इयरी पियरी पेन्हले हे।
गोदिया में सोभइ एगो<ref>एक</ref> बालक, नयन बीच काजर हे॥5॥
भइया हमर बीरन भइया, सुनहु बचन मोरा हे।
भइया, चोरवा हइ सुकुमार फुलुक<ref>शिथिल, ढीला</ref> डोरी बाँधिहऽ, सोबरन साँटि छुइह हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>