भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उम्र की दूर दिशा से / राम दरश मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> आज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:45, 8 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

आज उम्र की दूर दिशा से
सावन की वातास आ रही
जिन-जिन फूलों से गुज़रा
उन-उन फूलों की वास आ रही!

निकला था मैं सालों पहले
घर से गठरी लिए सफ़र की
कुछ अरूप सपने भविष्य के
कुछ गाढ़ी यादें थीं घर की

आज न जाने कहाँ-कहाँ की दूरी
मेरे पास आ रही!

बहते हुए शहर के पथ पर
आँखें सहसा अट जाती थीं
धूल-भरी आकृतियाँ कुछ
गाँव की दिखाई पड़ जाती थीं

उमड़-उमड़ अब भी अंतरतम में
बचपन की प्यास आ रही!

चलता गया, राह में आए
कितने नए-नए चौराहे
पाता गया न जाने कितना
कुछ नूतन चाहे-अनचाहे

यादों में कुछ पेड़ पिता-से,
भीगी माँ-सी घास आ रही!

साथ समय के चलते-चलते
कितना दूर निकल आया मैं
फिर भी रह-रहकर लगता
ओ गाँव, तुम्हारा ही साया मैं

मेरी इन शहरी साँसों में
उन खेतों की साँस आ रही!