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"अन्तिम क्षण का गीत / आन्ना अख़्मातवा" के अवतरणों में अंतर
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पर सीढ़ी थीं केवल तीन | पर सीढ़ी थीं केवल तीन | ||
उधर फुसफुसा रहा था पतझड़ | उधर फुसफुसा रहा था पतझड़ | ||
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मैं चली थी धोखा देने | मैं चली थी धोखा देने |
15:21, 22 जुलाई 2015 का अवतरण
बहुत बेबस था मन मेरा
पर चाल थी मेरी हल्की
मैं दस्ताना बदल रही थी
घबराहट थी कल की
मुझे लगा- सीढ़ियाँ हैं ज़्यादा
पर सीढ़ी थीं केवल तीन
उधर फुसफुसा रहा था पतझड़
आ, आ जा ! मौत हसीन !
मैं चली थी धोखा देने
अपने दुखी, अशांत जीवन को
कहा- तेरे साथ मरूँगी
वारा तुझ पर तन-मन को
यह गीत था अन्तिम क्षण का
देखा मैंने उस घर को
वहाँ शयनकक्ष था रोशन
उस फीके पीले निर्झर को
मूल रूसी भाषा से अनूदित : अनिल जनविजय