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"वो आना चाहती है-7 / अनिल पुष्कर" के अवतरणों में अंतर

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वो तमाम बेनाम फूलों के इत्र लाई है  
 
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फलों के रस और सब्जबाग़ की महक लाई है  
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फलों के रस और सब्ज़बाग़ की महक लाई है  
 
वो बेशुमार चीज़ें और इल्म लाई है  
 
वो बेशुमार चीज़ें और इल्म लाई है  
 
वो शौक लाई है नफ़ासत लाई है ताज़ा हवा लाई है   
 
वो शौक लाई है नफ़ासत लाई है ताज़ा हवा लाई है   

14:07, 1 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण

वो कहती है
कि इस रसोई के लज़ीज़ पकवान वो रखेगी अपने पास
और मेज़बानी में पसन्दीदा ख़ुशबुएँ परोसेगी अपने मुल्क ले

वो तमाम बेनाम फूलों के इत्र लाई है
फलों के रस और सब्ज़बाग़ की महक लाई है
वो बेशुमार चीज़ें और इल्म लाई है
वो शौक लाई है नफ़ासत लाई है ताज़ा हवा लाई है
वो इश्क और भरोसे का पैगाम लेके आई है
वो तहज़ीब लाई है कौम लाई है
वो धूम और शान की दौलत लाई है

मुक़ाबलेतन
नई दुनिया की पैमाइश लेके आई है
और उम्मीद से खिली-खिली
कि हमारी चाहत कम न हो ।