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"हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,<br> | सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,<br> | ||
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मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,<br> | मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,<br> | ||
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।<br><br> | हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।<br><br> |
21:25, 19 मार्च 2007 का अवतरण
लेखक: दुष्यंत कुमार
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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।