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"जरा पिला दो पानी / विष्णुकांत पांडेय" के अवतरणों में अंतर

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चींटी ने वह चाँटा मारा
गिरा उलटकर हाथी,
सरपट भागे गदहे-घोड़े
भागे सारे साथी।
धूल झाड़कर हाथी बोला-
‘माफ करो हे रानी-
अब न कभी लड़ने जाऊँगा
जरा पिला दो पानी।’