भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीली धूप / अजय 'प्रसून'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय 'प्रसून' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatB...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:56, 4 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

माचिस की है तीली धूप,
सरसों-सी है पीली धूप।

गरम दूध-सी उबल रही है,
चूल्हे चढ़ी पतीली धूप।

अभी शाम आई थी, डटकर,
उसने सारी पी ली धूप।

सर्दी में क्यों हो जाती है,
पता नहीं, नखरीली धूप।

गरमी के तपते मौसम में,
होती बड़ी हठीली धूप।