"'किस बला का जोश जानां तेरे दीवाने में है / कांतिमोहन 'सोज़'" के अवतरणों में अंतर
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01:36, 7 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
अकबर इलाहाबादी ने लिखा है --
किस बला का जोश जानां तेरे दीवाने में है ।
कल ज़मानत पर छुटा था आज फिर थाने में है ।
उन्हीं की तर्ज़ पर --
’किस बला का जोश जानां तेरे दीवाने में है ।
कल ज़मानत पर छुटा था आज फिर थाने में है ।’
ज़िन्दगी भर ज़ुल्म सहकर लोग उफ़ करते नहीं
वो समझता है मज़ा घुट-घुटके मर जाने में है ।
और क्या रक्खा है चलकर उसको शर्मिन्दा करें
लोग कहते हैं कि जादू उसके शरमाने में है ।
खार गो क़ायम रहा खिल तो नहीं पाया कभी
ज़िन्दगी एक फूल की खिलकर बिखर जाने में है ।
उस फ़रिश्ते से मिलोगे जिसका शैतां नाम है
कल तलक वो ख़ुल्द<ref>स्वर्ग</ref> में था आजकल थाने में है ।
ख़ैरियत क्या पूछते हो खैरियत अब है कहाँ
दर हक़ीक़त खैरियत अब सिर्फ़ मर जाने में है ।
ख़ौफ़ से ज़ाहिद के मस्जिद में नहीं जाते थे सोज़
अब ये सुनते हैं कि वो कमबख़्त मयख़ाने में है ।।