भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सामना / सुदर्शन प्रियदर्शिनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:23, 14 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

उकडू बैठ कर
घुटने मोड़ कर
उम्र भर
इस उम्र
हर सदी हर युग
मैंने छुपाई हैं प्रताड़नाएं...

पर निकल गया है अब अंधड़
निकल गया है सारा बडवानल...

मैं अब घुटने सीधे कर
रही हूं फेरने के लिए
लहरों का रुख...!