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"पर-स्त्री / सुदर्शन प्रियदर्शिनी" के अवतरणों में अंतर

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00:23, 14 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

दूसरी औरत के तिलस्म
में फिसलते रहे तुम्हारे
हाथ कान नाक आंखें
उम्र भर...

अब वही हाथ
पांव नाक और आंख मुझे
छुएं?
मुझे जूठे बर्तनों से
घिन आती है...!