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"घर की चौखट से बाहर / सुशीला टाकभौरे" के अवतरणों में अंतर
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दरवाज़े के पीछे | दरवाज़े के पीछे |
05:53, 14 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
दरवाज़े के पीछे
परदे की ओट से
झाँकती औरत
दरवाज़े से बाहर देखती है
गली-मोहल्ला शहर संसार
आँख, कान, विचार स्वतन्त्र हैं
बन्धन हैं सिर्फ़ पाँव में
कुल की लाज
सीमाओं का दायरा
घर की चौखट तक
मायका हो या ससुराल
दरवाज़े के पीछे
परदे की ओट से
वह देखती है संसार
समझने लगी है सब
फिर भी है चुप
हिलाकर हाथ अपने
स्वयं पकड़ लेती है बन्धन
जकड़े रहने देती है पाँव
अब
आने वाली पीढ़ियों को
बचाना होगा।
रास्ता देना होगा—
आगे बढ़कर
घर की चौखट से बाहर निकलना होगा!