भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लेकिन कब तक? / सुशीला टाकभौरे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला टाकभौरे |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

05:55, 14 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

मन की चट्टान पर
जब भी चोट पड़ती है
सब ओर
एक आग सी फैल जाती है
धुंधआती अधजली आग
ज्वालामुखी होकर
धरती-सी फूट पड़ती है
लोग भूकम्प की बात को
सहज मानते हैं
स्त्री ज्वाला-मुखी हो सकती है
यह भी तो सहज बात है