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"देखकर ख़्वाब किसी और ज़मीं के यारो / ज़ाहिद अबरोल" के अवतरणों में अंतर

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02:49, 25 अक्टूबर 2015 का अवतरण

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देख कर ख़्वाब किसी और ज़मीं के यारो हम नहीं ग़ैर बने हम हैं यहीं के यारो

जब भी टूटेंगे ये पैमान<ref>वा’दे</ref> ज़मीं के यारो हम फ़लकपैमा <ref>आकाशचारी, नभचर,ऊंची उड़ाने भरने वाले</ref> रहेंगे न कहीं के यारो

दिल के पर्दे में उसे जब भी छुपाना चाहा राज़ ज़ाहिर<ref>प्रत्यक्ष</ref> हुए उस पर्दःनशीं<ref>पर्दे में रहने वाला</ref> के यारो

शह्र में हर जगह आईन-ए-ज़बांबंदी<ref>बोलने की मनाही का कानून</ref> था फिर भी चर्चे हुए मुझ गोशःनशीं<ref>एकांतवासी,कोना में बैठने वाला</ref> के यारो

आस्मां से जो गिरे हैं तो ज़मींदोज़<ref>भूमिगत</ref> हुए आस्मां के न रहे और न ज़मीं के यारो

“ज़ाहिद” इक उम्र रहे हम तो परीख़ानः<ref>परी-आवास</ref> में ख़्वाब देखे मगर इक ज़ु़हरःजबीं<ref>शुक्र तारी –सा चमकता हुआ मुख, शुभ्रभाल सुन्दरी</ref> के यारो

शब्दार्थ
<references/>

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