भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब भी कोई ग़म नया हमको मिला / ज़ाहिद अबरोल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल |संग्रह=दरिया दरिया-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:41, 27 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
जब भी कोई ग़म नया हम को मिला
फ़ल्सफः इक ज़ीस्त का हम को मिला
अहल-ए-ग़म की ग़मगुसारी के लिए
एक दिल बेआसरा हम को मिला
क्या करें वक़्त-ए-सहर ही दोस्तो!
एक आलम शाम का हम को मिला
जब किसी भी राह में भटके हैं हम
मंज़िलों का कुछ पता हम को मिला
ज़िन्दगी ख़ुद ही मिटा कर दोस्तो!
इक अजब आराम सा हम को मिला
मौत की आग़ोश में बैठे हुए
ज़िन्दगी का रास्ता हम को मिला
सब ख़ता अपनी ही है “ज़ाहिद” यहां
जो मिला है बेख़ता हम को मिला
शब्दार्थ
<references/>