भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम तक / अनुपमा पाठक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपमा पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:25, 28 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण
सजल आँखों से जलाया
देहरी पर एक दीप...
मन का आँगन
लिया पहले ही था लीप...
बड़े स्नेह से बुला रहे हैं
ज़िन्दगी ! आओ न समीप...
हम भी तुम तक ही तो आ रहे हैं
चुनते हुए भावों के मोती सीप... !!