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04:25, 28 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण

सजल आँखों से जलाया
देहरी पर एक दीप...

मन का आँगन
लिया पहले ही था लीप...

बड़े स्नेह से बुला रहे हैं
ज़िन्दगी ! आओ न समीप...

हम भी तुम तक ही तो आ रहे हैं
चुनते हुए भावों के मोती सीप... !!