"जब मैं स्त्री हूँ (कविता) / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर
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मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
तो मुझे दिखना भी चाहिए स्त्री की तरह | तो मुझे दिखना भी चाहिए स्त्री की तरह | ||
− | मसलन मेरे केश | + | मसलन मेरे केश लम्बे, |
स्तन पुष्ट और कटि क्षीण हो | स्तन पुष्ट और कटि क्षीण हो | ||
− | देह हो तुली इतनी कि इंच कम न | + | देह हो तुली इतनी कि इंच कम न छटाँक ज्यादा |
− | + | बिल्कुल खूबसूरत डस्टबिन की तरह जिसमें | |
डाल सकें वे | डाल सकें वे | ||
− | देह,मन,दिमाग का सारा कचरा और वह | + | देह, मन, दिमाग का सारा कचरा और वह |
− | मुस्कुराता रहे | + | मुस्कुराता रहे-‘प्लीज यूज मी’। |
− | + | ||
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
− | तो मेरे वस्त्र भी | + | तो मेरे वस्त्र भी डेªस कोड के |
− | हिसाब से होने चाहिए जरा | + | हिसाब से होने चाहिए जरा भी कम न महीन |
− | भले ही हो | + | भले ही हो कार्यक्षेत्र कोई |
− | आखिर मर्यादा से | + | आखिर मर्यादा से ज़रूरी क्या है |
− | और मर्यादा | + | स्त्री के लिए और मर्यादा वस्त्रों में ही होती है। |
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
तो मुझे यह मानकर चलना चाहिए | तो मुझे यह मानकर चलना चाहिए | ||
− | कि लक्ष्मण | + | कि लक्ष्मण रेखा के बाहर रहते हैं |
− | सिर्फ रावण इसलिए घर | + | सिर्फ रावण इसलिए घर के |
− | क्योंकि स्त्री की चुप्पी से ही बना रहता है | + | भीतर अपनों द्वारा चुपचाप लुटती रहना चाहिए |
+ | क्योंकि स्त्री की चुप्पी से ही बना रहता है घर। | ||
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
तो मुझे देवी की तरह हर | तो मुझे देवी की तरह हर | ||
हाल में आशीर्वाद की मुद्रा में रहना चाहिए | हाल में आशीर्वाद की मुद्रा में रहना चाहिए | ||
− | लोग पूजें या गोबर करें | + | लोग पूजें या जानवर गोबर करें |
शिकायत नहीं करनी चाहिए | शिकायत नहीं करनी चाहिए | ||
− | अच्छी नहीं | + | अच्छी नहीं लगतीं देवी में |
− | मनुष्य की | + | मनुष्य की कमजोरियाँ। |
− | + | ||
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
− | तो मुझे उन सारे नियमों | + | तो मुझे उन सारे नियमों, व्रतों |
− | परम्पराओं का | + | परम्पराओं का अन्धानुकरण करना चाहिए |
− | जिन्हें बनाया गया | + | जिन्हें बनाया गया है। |
− | हमारे लिए बिना यह सवाल | + | हमारे लिए बिना यह सवाल उठाये |
कि हमारे नियामकों ने | कि हमारे नियामकों ने | ||
− | स्वयं कितना पालन किया इन नियमों का.. | + | स्वयं कितना पालन किया इन नियमों का... |
− | सवाल करने पर हश्र होगा गार्गी और | + | सवाल करने पर हश्र होगा गार्गी या द्रौपदी सा। |
+ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
+ | तो मुझे स्वतन्त्र | ||
+ | प्रेम का अधिकार नहीं है | ||
+ | करना होगा उसी से प्रेम | ||
+ | जिसे वे चुनेंगे हमारे लिए... | ||
+ | उनके प्रेम-प्रस्तावों को | ||
+ | स्वीकारना जरूरी है हमारे लिए | ||
+ | पर हमारी | ||
+ | पहल पर वे | ||
+ | काट लेंगे हमारे नाक-कान। | ||
+ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
+ | तो मुझे अपनी | ||
+ | कोख पर | ||
+ | भी अपना अधिकार नहीं मानना चाहिए... | ||
+ | उनके वारिस के | ||
+ | लिए उनके नियत अनचाहे बूढ़े पुरुष से | ||
+ | ‘नियोग’ पुण्य | ||
+ | होगा भले ही भय से मूँदनी पड़े आँखें | ||
+ | और देह पीली पड़ जाए | ||
+ | पर इच्छित पुरुष से गर्भ पाप होगा | ||
+ | इतना कि त्यागना | ||
+ | पड़ेगा उसे कर्ण और कबीर की तरह। | ||
+ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
+ | तो अपने लिए कोई क्षेत्र | ||
+ | चुनना या महत्त्वाकाँक्षी होना | ||
+ | पाप और स्वतन्त्र राय या | ||
+ | इच्छा अपराध है | ||
+ | ऐसे ही नहीं खारिज हैं कुछ स्त्री-नाम | ||
+ | सद्नामों से। | ||
+ | मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ | ||
+ | तो नहीं है अपनी देह भी मेरी | ||
+ | वह ढलेगी उनके साँचे में, | ||
+ | पलेगी उनके नियमों से | ||
+ | जी जाएगी उनकी मर्जी से... | ||
+ | वरना वे कहेंगे उच्छृंखल, | ||
+ | बिगड़ी...बद और बदनाम हमें | ||
+ | वे भले ही बनाते रहे | ||
+ | हमारे न्यूड देह उघाडू ड्रेसेज, | ||
+ | नीली फिल्में... बेचते रहे बाजार में... यूज और थ्रो | ||
+ | का कल्चर अपनाते रहें... | ||
+ | ईज़ाद करते रहें, नयी-नयी | ||
+ | गलियाँ और शोषण के तरीके एक साथ | ||
+ | वे सब कुछ कर सकते हैं क्योंकि वे स्त्री नहीं हैं | ||
+ | और जब वे स्त्री नहीं हैं | ||
+ | तो कुछ भी सोच सकते हैं | ||
+ | कह सकते हैं कर सकते हैं...। | ||
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23:36, 7 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे दिखना भी चाहिए स्त्री की तरह
मसलन मेरे केश लम्बे,
स्तन पुष्ट और कटि क्षीण हो
देह हो तुली इतनी कि इंच कम न छटाँक ज्यादा
बिल्कुल खूबसूरत डस्टबिन की तरह जिसमें
डाल सकें वे
देह, मन, दिमाग का सारा कचरा और वह
मुस्कुराता रहे-‘प्लीज यूज मी’।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मेरे वस्त्र भी डेªस कोड के
हिसाब से होने चाहिए जरा भी कम न महीन
भले ही हो कार्यक्षेत्र कोई
आखिर मर्यादा से ज़रूरी क्या है
स्त्री के लिए और मर्यादा वस्त्रों में ही होती है।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे यह मानकर चलना चाहिए
कि लक्ष्मण रेखा के बाहर रहते हैं
सिर्फ रावण इसलिए घर के
भीतर अपनों द्वारा चुपचाप लुटती रहना चाहिए
क्योंकि स्त्री की चुप्पी से ही बना रहता है घर।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे देवी की तरह हर
हाल में आशीर्वाद की मुद्रा में रहना चाहिए
लोग पूजें या जानवर गोबर करें
शिकायत नहीं करनी चाहिए
अच्छी नहीं लगतीं देवी में
मनुष्य की कमजोरियाँ।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे उन सारे नियमों, व्रतों
परम्पराओं का अन्धानुकरण करना चाहिए
जिन्हें बनाया गया है।
हमारे लिए बिना यह सवाल उठाये
कि हमारे नियामकों ने
स्वयं कितना पालन किया इन नियमों का...
सवाल करने पर हश्र होगा गार्गी या द्रौपदी सा।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे स्वतन्त्र
प्रेम का अधिकार नहीं है
करना होगा उसी से प्रेम
जिसे वे चुनेंगे हमारे लिए...
उनके प्रेम-प्रस्तावों को
स्वीकारना जरूरी है हमारे लिए
पर हमारी
पहल पर वे
काट लेंगे हमारे नाक-कान।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो मुझे अपनी
कोख पर
भी अपना अधिकार नहीं मानना चाहिए...
उनके वारिस के
लिए उनके नियत अनचाहे बूढ़े पुरुष से
‘नियोग’ पुण्य
होगा भले ही भय से मूँदनी पड़े आँखें
और देह पीली पड़ जाए
पर इच्छित पुरुष से गर्भ पाप होगा
इतना कि त्यागना
पड़ेगा उसे कर्ण और कबीर की तरह।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो अपने लिए कोई क्षेत्र
चुनना या महत्त्वाकाँक्षी होना
पाप और स्वतन्त्र राय या
इच्छा अपराध है
ऐसे ही नहीं खारिज हैं कुछ स्त्री-नाम
सद्नामों से।
मैं स्त्री हूँ और जब मैं स्त्री हूँ
तो नहीं है अपनी देह भी मेरी
वह ढलेगी उनके साँचे में,
पलेगी उनके नियमों से
जी जाएगी उनकी मर्जी से...
वरना वे कहेंगे उच्छृंखल,
बिगड़ी...बद और बदनाम हमें
वे भले ही बनाते रहे
हमारे न्यूड देह उघाडू ड्रेसेज,
नीली फिल्में... बेचते रहे बाजार में... यूज और थ्रो
का कल्चर अपनाते रहें...
ईज़ाद करते रहें, नयी-नयी
गलियाँ और शोषण के तरीके एक साथ
वे सब कुछ कर सकते हैं क्योंकि वे स्त्री नहीं हैं
और जब वे स्त्री नहीं हैं
तो कुछ भी सोच सकते हैं
कह सकते हैं कर सकते हैं...।