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"है अजीब शहर की ज़िंदगी / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
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कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें | कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें | ||
− | ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या | + | ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मुतालबों का सलाम है |
यूँ ही रोज़ मिलने कि आरज़ू बड़ी रख रखाव कि गुफ्तगू | यूँ ही रोज़ मिलने कि आरज़ू बड़ी रख रखाव कि गुफ्तगू | ||
ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है | ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है | ||
− | वो दिलों में आग लगायेगा | + | वो दिलों में आग लगायेगा मैं दिलों कि आग बुझाऊंगा |
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है | उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है | ||
न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल कर | न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल कर | ||
− | कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज कि शाम | + | कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज कि शाम है |
कोई नग्मा धुप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम कि छाँव सा | कोई नग्मा धुप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम कि छाँव सा | ||
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है | ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है | ||
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03:47, 9 दिसम्बर 2015 का अवतरण
है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिज़ाज सी शाम है
कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें
ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मुतालबों का सलाम है
यूँ ही रोज़ मिलने कि आरज़ू बड़ी रख रखाव कि गुफ्तगू
ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है
वो दिलों में आग लगायेगा मैं दिलों कि आग बुझाऊंगा
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है
न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल कर
कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज कि शाम है
कोई नग्मा धुप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम कि छाँव सा
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है