भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वो जो रह-रहके चोट कर जाए / उर्मिला माधव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिला माधव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:36, 9 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
वो जो रह-रहके चोट कर जाए,
अपने अलफ़ाज़ से मुकर जाए,
आशिक़ी,इश्क एक फजीहत है,
जिसको रोना हो वो इधर जाए,
दर्द से दिल नहीं मुकाबिल हो,
खैरियत से ही अब गुज़र जाए,
मुझको हंसने को इक बहाना दे,
ज़िन्दगी जाने कब ठहर जाए,
जीस्त को जब भी ऐसी ख्वाहिश हो,
इतनी तौफीक़ दे कि मर जाए !