भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सब कुछ, कुछ-कुछ / राग तेलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>कुछ क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:51, 19 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
कुछ को जानता नहीं था
तब तक कुछ नहीं था
कुछ को जब जाना
पता चला
सब कुछ के होने का
सब कुछ भी
सब नहीं
यह समझा
कुछ नहीं से शुरूकर
अब नहीं कहता
जानता कुछ नहीं
न ही
जानता सब कुछ
बस
समझता हूं
कुछ-कुछ ।