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"कमाल की औरतें ३९ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर

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लड़कियां पक के तैयार हैं अब काट दो
लड़कियां अकेली मिलें तो बांट लो

अबकी बो लो लड़कियों के बीज
धरती-धरती को लेकर सो जायेगी
जमीं बंजर हो जायेगी

छोटी सी पायल में खनकेगा ƒघर का आंगन
शीशे में चिपकी बिंदी आग सी दहकेगी

तुम हाथ सेंकना।