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"सड़क की छाती पर चिपकी ज़िन्दगी ४ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर
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धमाकों के बाद की सुबह
बड़ी अजनबी होती है
चेहरे नहीं पहचाने जाते
फटी सड़कों की छातियों पर
चिपकी होती है ज़िन्दगी
निशान सी।