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"सड़क की छाती पर चिपकी ज़िन्दगी ९ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर
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सूखे पत्तों सी
चरमरा रही
धरती
हरा हार गया
एक कुआं भागता है
गांव के रास्ते पर
प्यास पीछा करती है
समय से पहले मरे पेड़ों की
चिता पर
कुछ भूख सिकती है।