भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कमाल की औरतें ३४ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=शैलजा पाठक | |रचनाकार=शैलजा पाठक | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी | + | |संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी / शैलजा पाठक |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
15:04, 21 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
हर चिड़िय़ां लड़ाकू नहीं होती
और सारी चिड़िय़ां सुन्दर भी नहीं
सभी उड़ भी नहीं पाती आसमान तक
सबके चोंच गुलाबी भी नहीं होते
सबके गले से सुरीली आवाज़ भी नहीं निकालती
सभी के घोंसलों में परिवार की ऊर्जा भी नहीं भरी होती
कुछ चिडिय़ां अकेले भी नापती हैं आकाश
पर चिड़िय़ां चाहे जैसी भी हों
उनके पंख सुनहरे होते हैं
और हम हर सुनहरी चीज़ का शिकार करते हैं।