"बचपन / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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− | क्या दिन थे यारो वह भी थे जबकि भोले | + | क्या दिन थे यारो वह भी थे जबकि भोले भाले। |
− | निकले थी दाई लेकर फिरते कभी ददा | + | निकले थी दाई लेकर फिरते कभी ददा ले॥ |
− | चोटी कोई रखा ले | + | चोटी कोई रखा ले बद्घी कोइ पिन्हा ले। |
− | + | हंसली गले में डाले मिन्नत कोई बढ़ा ले। | |
− | + | मोटें हों या कि दुबले, गोरे हों या कि काले॥ | |
− | + | क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले॥1॥ | |
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− | दिल में किसी के हरगिज़ ने | + | दिल में किसी के हरगिज़ ने<ref>नहीं है, उर्दू फारसी में ‘ने’ नहीं के लिए प्रयोग होता है</ref> शर्म ने हया है। |
− | आगा भी खुल रहा है,पीछा भी खुल रहा | + | आगा भी खुल रहा है, पीछा भी खुल रहा है। |
− | पहनें फिरे तो क्या है, नंगे फिरे तो क्या | + | पहनें फिरे तो क्या है, नंगे फिरे तो क्या है। |
− | + | यां यूं भी वाह वा है और वं भी वाह वा है। | |
− | + | कुछ खाले इस तरह से कुछ उस तरह से खाले। | |
− | + | क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले॥2॥ | |
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− | मर जावे कोई तो भी कुछ उनका ग़म न | + | मर जावे कोई तो भी कुछ उनका ग़म न करना। |
− | ने जाने कुछ बिगड़ना, ने जाने कुछ | + | ने जाने कुछ बिगड़ना, ने जाने कुछ संवरना। |
− | उनकी बला से घर | + | उनकी बला से घर ें हो कै़द या कि घिरना। |
− | जिस बात पर यह मचले फिर वो ही कर | + | जिस बात पर यह मचले फिर वो ही कर गुज़रना। |
− | + | मां ओढ़नी को, बाबा पगड़ी को बेच डाले। | |
− | + | क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले॥3॥ | |
− | + | ||
− | कोई चीज़ देवे नित हाथ ओटते | + | जो कोई चीज़ देवे नित हाथ ओटते हैं। |
− | गुड़, बेर, मूली, | + | गुड़, बेर, मूली, गाज़र, ले मुंह में घोटते हैं॥ |
− | बाबा की | + | बाबा की मूंछ मां की चोटी खसोटते हैं। |
− | गर्दों में अट रहे हैं, ख़ाकों में लोटते | + | गर्दों में अट रहे हैं, ख़ाकों में लोटते हैं॥ |
− | + | कुछ मिल गया सो पी लें, कुछ बन गया सो खालें। | |
− | + | क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले॥4॥ | |
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− | जो उनको दो | + | जो उनको दो सौ खालें, फीका हो या सलोना। |
− | हैं बादशाह से बेहतर जब मिल गया | + | हैं बादशाह से बेहतर जब मिल गया खिलौना॥ |
− | जिस जा पे नींद आई फिर वां ही उनको | + | जिस जा पे नींद आई फिर वां ही उनको सोना। |
− | परवा न कुछ पलंग की ने चाहिए | + | परवा न कुछ पलंग की ने चाहिए बिछौना॥ |
− | + | भोंपू कोई बजा ले, फिरकी कोई फिरा ले। | |
− | + | क्या ऐश लूटते हैं, मासूम भोले भाले॥5॥ | |
− | + | ||
− | ये बालेपन का यारो, आलम अजब बना | + | ये बालेपन का यारो, आलम अजब बना है। |
− | यह उम्र वो है इसमें जो है सो बादशाह | + | यह उम्र वो है इसमें जो है सो बादशाह है॥ |
और सच अगर ये पूछो तो बादशाह भी क्या है। | और सच अगर ये पूछो तो बादशाह भी क्या है। | ||
− | अब तो | + | अब तो ”नज़ीर“ मेरी सबको यही दुआ है। |
− | + | जीते रहें सभी के आसो-मुराद वाले। | |
− | + | क्या ऐश लूटते हैं, मासूम भोले भाले॥6॥ | |
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14:24, 8 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
क्या दिन थे यारो वह भी थे जबकि भोले भाले।
निकले थी दाई लेकर फिरते कभी ददा ले॥
चोटी कोई रखा ले बद्घी कोइ पिन्हा ले।
हंसली गले में डाले मिन्नत कोई बढ़ा ले।
मोटें हों या कि दुबले, गोरे हों या कि काले॥
क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले॥1॥
दिल में किसी के हरगिज़ ने<ref>नहीं है, उर्दू फारसी में ‘ने’ नहीं के लिए प्रयोग होता है</ref> शर्म ने हया है।
आगा भी खुल रहा है, पीछा भी खुल रहा है।
पहनें फिरे तो क्या है, नंगे फिरे तो क्या है।
यां यूं भी वाह वा है और वं भी वाह वा है।
कुछ खाले इस तरह से कुछ उस तरह से खाले।
क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले॥2॥
मर जावे कोई तो भी कुछ उनका ग़म न करना।
ने जाने कुछ बिगड़ना, ने जाने कुछ संवरना।
उनकी बला से घर ें हो कै़द या कि घिरना।
जिस बात पर यह मचले फिर वो ही कर गुज़रना।
मां ओढ़नी को, बाबा पगड़ी को बेच डाले।
क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले॥3॥
जो कोई चीज़ देवे नित हाथ ओटते हैं।
गुड़, बेर, मूली, गाज़र, ले मुंह में घोटते हैं॥
बाबा की मूंछ मां की चोटी खसोटते हैं।
गर्दों में अट रहे हैं, ख़ाकों में लोटते हैं॥
कुछ मिल गया सो पी लें, कुछ बन गया सो खालें।
क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले॥4॥
जो उनको दो सौ खालें, फीका हो या सलोना।
हैं बादशाह से बेहतर जब मिल गया खिलौना॥
जिस जा पे नींद आई फिर वां ही उनको सोना।
परवा न कुछ पलंग की ने चाहिए बिछौना॥
भोंपू कोई बजा ले, फिरकी कोई फिरा ले।
क्या ऐश लूटते हैं, मासूम भोले भाले॥5॥
ये बालेपन का यारो, आलम अजब बना है।
यह उम्र वो है इसमें जो है सो बादशाह है॥
और सच अगर ये पूछो तो बादशाह भी क्या है।
अब तो ”नज़ीर“ मेरी सबको यही दुआ है।
जीते रहें सभी के आसो-मुराद वाले।
क्या ऐश लूटते हैं, मासूम भोले भाले॥6॥