"होली-16 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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− | बजा लो | + | बजा लो तबलो तरब इस्तमाल होली का। |
− | हुआ नुमूद | + | हुआ नुमूद में रंगों जमाल होली का॥ |
− | भरा सदाओं में, रागो | + | भरा सदाओं में, रागो ख़याल होली का। |
− | बढ़ा | + | बढ़ा खु़शी के चमन में निहाल होली का॥ |
− | + | अजब बहार में आया, जमाल होली का॥1॥ | |
− | हर | + | हर तरफ से लगे रंगों रूप कुछ सजने। |
− | चमक के हाथों में कुछ | + | चमक के हाथों में कुछ तालियां लगी बजने॥ |
− | किया | + | किया जहूर हंसी ओर खुशी की सजधज ने। |
− | सितारो ढोलो मृदंग दफ़ लगे | + | सितारो ढोलो मृदंग दफ़ लगे बजने॥ |
− | + | धमक के तबलों पै खटके हैं ताल होली का॥2॥ | |
− | जिधर को देखो उधर ऐशो | + | जिधर को देखो उधर ऐशो चुहलके खटके। |
− | हैं भीगे रंग से दस्तारो जाम | + | हैं भीगे रंग से दस्तारो जाम और पटके॥ |
− | भरे हैं | + | भरे हैं हौज़ कहीं रंग के कहीं मटके। |
− | कोई | + | कोई खु़शी से खड़ा थिरके और मटके॥ |
− | + | यह रंग ढंग है रंगी खिसाल<ref>स्वभाव, आदत</ref> होली का॥3॥ | |
− | निशातो ऐश | + | निशातो ऐश से चते तमाशे झमकेरे। |
− | बदन में | + | बदन में छिड़कवां जोड़े सुनहरे बहुतेरे॥ |
− | खड़े हैं रंग लिए कूच औ गली | + | खड़े हैं रंग लिए कूच औ गली घेरे। |
− | पुकारते हैं कि भड़ुआ हो अब जो | + | पुकारते हैं कि भड़ुआ हो अब जो मुंह फेरे॥ |
− | + | यह कहके देते हैं झट रंग डाल होली का॥4॥ | |
− | + | जरूफ बादए गुलरंग से चमकते हैं। | |
− | सुराही उछले | + | सुराही उछले हैं और जाम भी छलकते हैं॥ |
− | नशों के जोश में महबूब भी झमकते | + | नशों के जोश में महबूब भी झमकते हैं। |
− | इधर अबीर उधर रंग ला छिड़कते | + | इधर अबीर उधर रंग ला छिड़कते हैं॥ |
− | + | उधर लगाते हैं भर भर गुलाल होली का॥5॥ | |
− | जो रंग पड़ने से कपड़ों तईं छिपाते | + | जो रंग पड़ने से कपड़ों तईं छिपाते हैं। |
− | तो उनको दौड़ के अक्सर पकड़ के लाते | + | तो उनको दौड़ के अक्सर पकड़ के लाते हैं॥ |
− | लिपट के उनपे घड़े रंग के झुकाते | + | लिपट के उनपे घड़े रंग के झुकाते हैं। |
− | गुलाल | + | गुलाल मुंह पै लगा गु़लमचा सुनाते हैं॥ |
− | + | यही है हुक्म अब ऐश इस्तमाल होली का॥6॥ | |
− | गुलाल चहरए | + | गुलाल चहरए खू़बां पै यों झमकता है। |
− | कि | + | कि रश्क़ से गुले-खुर्शीद<ref>सूरजमुखी का फूल</ref> |
− | उधर अबीर भी | + | उधर अबीर भी अफ़शा<ref>स्त्रियों के बालों अथवा गालों पर छिड़कने का सुनहला या रूपहला चूर्ण</ref> नमित चमकता है। |
− | हरेक के | + | हरेक के जुल्फ़ से रंग इसतरह टपकता है॥ |
− | + | कि जिससे होता है खुश्क बाल बाल होली का॥7॥ | |
− | कहीं तो रंग छिड़क कर कहें कि होली | + | कहीं तो रंग छिड़क कर कहें कि होली है। |
− | कोई | + | कोई खुशी से ललक कर कहें कि होली है॥ |
− | अबीर फेंकें हैं | + | अबीर फेंकें हैं तक कर कहें कि होली है। |
− | गुलाल मलके लपक कर कहें कि होली | + | गुलाल मलके लपक कर कहें कि होली है॥ |
− | + | हरेक तरफ से है यह कुछ इत्तिसाल<ref>मेल-मिलाप</ref> होली का॥8॥ | |
− | यह हुस्न होली के रंगीन अदाए | + | यह हुस्न होली के रंगीन अदाए मलियां है। |
− | जो | + | जो गलियां हैं तो मिश्री की वह भी डलियां हैं॥ |
− | चमन हैं | + | चमन हैं कूंचा सभी सहनो बाग गलियां हैं। |
− | तरब<ref>आनन्द</ref> है | + | तरब<ref>आनन्द</ref> है ऐश है, चुहलें हैं, रंग रलियां हैं॥ |
− | + | अजब ”नज़ीर“ है फ़रख़ुन्दा<ref>खुशी का</ref> हाल होली का॥9॥ | |
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13:40, 19 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
बजा लो तबलो तरब इस्तमाल होली का।
हुआ नुमूद में रंगों जमाल होली का॥
भरा सदाओं में, रागो ख़याल होली का।
बढ़ा खु़शी के चमन में निहाल होली का॥
अजब बहार में आया, जमाल होली का॥1॥
हर तरफ से लगे रंगों रूप कुछ सजने।
चमक के हाथों में कुछ तालियां लगी बजने॥
किया जहूर हंसी ओर खुशी की सजधज ने।
सितारो ढोलो मृदंग दफ़ लगे बजने॥
धमक के तबलों पै खटके हैं ताल होली का॥2॥
जिधर को देखो उधर ऐशो चुहलके खटके।
हैं भीगे रंग से दस्तारो जाम और पटके॥
भरे हैं हौज़ कहीं रंग के कहीं मटके।
कोई खु़शी से खड़ा थिरके और मटके॥
यह रंग ढंग है रंगी खिसाल<ref>स्वभाव, आदत</ref> होली का॥3॥
निशातो ऐश से चते तमाशे झमकेरे।
बदन में छिड़कवां जोड़े सुनहरे बहुतेरे॥
खड़े हैं रंग लिए कूच औ गली घेरे।
पुकारते हैं कि भड़ुआ हो अब जो मुंह फेरे॥
यह कहके देते हैं झट रंग डाल होली का॥4॥
जरूफ बादए गुलरंग से चमकते हैं।
सुराही उछले हैं और जाम भी छलकते हैं॥
नशों के जोश में महबूब भी झमकते हैं।
इधर अबीर उधर रंग ला छिड़कते हैं॥
उधर लगाते हैं भर भर गुलाल होली का॥5॥
जो रंग पड़ने से कपड़ों तईं छिपाते हैं।
तो उनको दौड़ के अक्सर पकड़ के लाते हैं॥
लिपट के उनपे घड़े रंग के झुकाते हैं।
गुलाल मुंह पै लगा गु़लमचा सुनाते हैं॥
यही है हुक्म अब ऐश इस्तमाल होली का॥6॥
गुलाल चहरए खू़बां पै यों झमकता है।
कि रश्क़ से गुले-खुर्शीद<ref>सूरजमुखी का फूल</ref>
उधर अबीर भी अफ़शा<ref>स्त्रियों के बालों अथवा गालों पर छिड़कने का सुनहला या रूपहला चूर्ण</ref> नमित चमकता है।
हरेक के जुल्फ़ से रंग इसतरह टपकता है॥
कि जिससे होता है खुश्क बाल बाल होली का॥7॥
कहीं तो रंग छिड़क कर कहें कि होली है।
कोई खुशी से ललक कर कहें कि होली है॥
अबीर फेंकें हैं तक कर कहें कि होली है।
गुलाल मलके लपक कर कहें कि होली है॥
हरेक तरफ से है यह कुछ इत्तिसाल<ref>मेल-मिलाप</ref> होली का॥8॥
यह हुस्न होली के रंगीन अदाए मलियां है।
जो गलियां हैं तो मिश्री की वह भी डलियां हैं॥
चमन हैं कूंचा सभी सहनो बाग गलियां हैं।
तरब<ref>आनन्द</ref> है ऐश है, चुहलें हैं, रंग रलियां हैं॥
अजब ”नज़ीर“ है फ़रख़ुन्दा<ref>खुशी का</ref> हाल होली का॥9॥