"बालपन-बाँसुरी बजैया का / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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− | यारो सुनो ! | + | यारो सुनो! यह दधि के लुटैया का बालपन। |
− | और मधुपुरी नगर के बसैया का | + | और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन॥ |
− | मोहन | + | मोहन सरूप निरत करैया का बालपन। |
− | बन-बन के | + | बन-बन के ग्वाल गोएँ चरैया का बालपन॥ |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥1॥ | |
− | ज़ाहिर में सुत | + | ज़ाहिर में सुत वह नन्द जसोदा के आप थे। |
− | + | वर्ना वह आप माई थे और आप बाप थे॥ | |
− | + | पर्दे में बालपन के यह उनके मिलाप थे। | |
− | जोती सरूप | + | जोती सरूप कहिये जिन्हें सो वह आप थे॥ |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥2॥ | |
− | उनको तो बालपन से न था काम कुछ | + | उनको तो बालपन से न था काम कुछ ज़रा। |
− | संसार की जो रीति थी उसको रखा | + | संसार की जो रीति थी उसको रखा बजा॥ |
− | मालिक थे | + | मालिक थे वह तो आपी उन्हें बालपन से क्या। |
− | + | वां बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक था॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥3॥ | |
− | मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ | + | मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ यां सरे। |
− | चाहे वह नंगे | + | चाहे वह नंगे पांव फिरे या मुकुट धरे॥ |
− | सब रूप हैं उसी के वह जो चाहे सो | + | सब रूप हैं उसी के वह जो चाहे सो करे। |
− | चाहे | + | चाहे जवां हो, चाहे लड़कपन से मन हरे॥ |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥4॥ | |
− | बाले हो | + | बाले हो व्रज राज जो दुनियां में आ गए। |
− | लीला के लाख रंग तमाशे दिखा | + | लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गए॥ |
− | इस बालपन के रूप में कितनों को भा | + | इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए। |
− | इक यह भी लहर थी कि | + | इक यह भी लहर थी कि जहां को जता गए॥ |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥5॥ | |
− | + | यूं बालपन तो होता है हर तिफ़्ल<ref>बच्चा</ref> का भला। | |
− | पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद | + | पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था॥ |
− | इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है | + | इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या। |
− | क्या जाने अपने खेलने | + | क्या जाने अपने खेलने आये थे क्या कला॥ |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥6॥ | |
− | राधारमन तो यारो | + | राधारमन तो यारो अ़जब जायेगौर<ref>विचार करने योग्य</ref> थे। |
− | लड़कों में वह | + | लड़कों में वह कहां है, जो कुछ उनमें तौर थे॥ |
− | आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर | + | आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे। |
− | उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और | + | उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे॥ |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥7॥ | |
− | वह बालपन में देखते | + | वह बालपन में देखते जीधर नज़र उठा। |
− | पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम | + | पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम सा॥ |
− | उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो | + | उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो आ। |
− | दंडवत ही वह करता था माथा झुका | + | दंडवत ही वह करता था माथा झुका झुका॥ |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥8॥ | |
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− | + | पर्दा न बालपन का वह करते अगर ज़रा। | |
− | + | क्या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता॥ | |
− | + | झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका। | |
− | + | पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥9॥ | |
− | + | मोहन, मदन, गोपाल, हरी बंस, मन हरन। | |
− | + | बलिहारी उनके नाम पै मेरा यह तन बदन॥ | |
− | + | गिरधारी, नन्दलाल, हरि नाथ, गोवरधन। | |
− | + | लाखों किये बनाव, हज़ारों किये जतन॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥10॥ | |
− | + | पैदा तो मधु पुरी में हुए श्याम जी मुरार। | |
− | + | गोकुल में आके नन्छ के घर में लिया क़रार<ref>ठहराव</ref>॥ | |
− | + | नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार<ref>न्यौछावर</ref>। | |
− | + | माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥11॥ | |
− | + | जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल व्रज राज। | |
− | और | + | सबके गले के कठुले थे और सबके सर के ताज॥ |
− | + | सुन्दर जो नारियां थीं वह करतीं थी कामो-काज। | |
− | + | रसिया का उन दिनों तो अजब रस का था मिज़ाज॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥12॥ | |
− | + | बदशक्ल से तो रोके सदा दूर हटते थे। | |
− | + | और खु़बरू को देखके हंस-हंस चिमटते थे॥ | |
− | + | जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बंटते थे। | |
− | + | उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥13॥ | |
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− | + | अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयां करूं। | |
− | + | या मीठी बातें मुंह से निकलना बयां करूं॥ | |
− | + | या बालकों की तरह से पलना बयां करूं। | |
− | + | या गोदियों में उनका मचलना बयां करूं॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥14॥ | |
− | + | पाटी पकड़के चलने लगे जब मदन गोपाल। | |
− | + | धरती तमाम हो गई एक आन में निहाल<ref>समृद्ध</ref>॥ | |
− | + | बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल। | |
− | + | आकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥15॥ | |
− | + | थी उनकी चाल की तो अ़जब यारो चाल-ढाल। | |
− | + | पांवों में घुंघरू बाजते, सर पर झंडूले बाल॥ | |
− | + | चलते ठुमक-ठुमक के जो वह डगमगाती चाल। | |
− | + | थांबें कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥16॥ | |
− | + | पहने झगा गले में जो वह दखिनी चीर का। | |
− | + | गहने में भर रहा गोया लड़का अमीर का॥ | |
− | + | जाता था होश देख के शाहो वज़ीर का। | |
− | + | मैं किस तरह कहूं इसे छोरा अहीर का॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥17॥ | |
− | + | जब पांवों चलने लागे बिहारी न किशोर। | |
− | + | माखन उचक्के ठहरे, मलाई दही के चोर॥ | |
− | + | मुंह हाथ दूध से भरे कपड़े भी शोर-बोर। | |
− | + | डाला तमाम ब्रज की गलियों में अपना शोर॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥18॥ | |
− | + | करने लगे यह धूम, जो गिरधारी नन्द लाल। | |
− | + | इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल बाल॥ | |
− | + | माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल। | |
− | + | दी अपनी दधि की चोरी की घर घर में धूम डाल॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥19॥ | |
− | + | थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा। | |
− | + | जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर में जा फिरा॥ | |
− | + | माखन मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया। | |
− | + | कुछ खाया, कुछ ख़राब किया, कुछ गिरा दिया॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥20॥ | |
− | + | कोठी में होवे फिर तो उसी को ढंढोरना। | |
− | तो | + | गोली में हो तो उसमें भी जा मुंह को बोरना॥ |
− | + | ऊंचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना। | |
− | + | पहुंा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥21॥ | |
− | + | गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहां। | |
− | तो | + | और उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले हां॥ |
− | + | मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियां। | |
− | + | खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूंटियां॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥22॥ | |
− | + | गर मारने को हाथ उठाती कोई ज़रा। | |
− | + | तो उसकी अंगिया फाड़ते घूसे लगा लगा॥ | |
− | + | चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा। | |
− | + | हर तरह वां से भाग निकलते उड़ा छुड़ा॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥23॥ | |
− | + | गुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर। | |
− | + | तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर॥ | |
− | + | जो आपी लाके धरती वह माखन कटोरी भर। | |
− | + | गुस्सा वह उनका आन में जाता वहीं उतर॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥24॥ | |
− | + | उनको तो देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं। | |
− | + | घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं॥ | |
− | + | ज़ाहिर में उनके हाथ से वह गुल मचाती थीं। | |
− | + | पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥25॥ | |
− | + | कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाऐंगे। | |
− | + | श्रीकृष्ण इसी बहाने हमें मुंह दिखाऐंगे॥ | |
− | + | और जो हमारे घर में यह माखन न पाऐंगे। | |
− | + | तो उनको क्या ग़रज है यह काहे को आऐंगे॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥26॥ | |
− | + | सब मिल जसोदा पास यह कहती थी आके बीर। | |
− | + | अब तो तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर॥ | |
− | + | देता है हमको गालियां फिर फाड़ता है चीर। | |
− | + | छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥27॥ | |
− | माता | + | माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियां। |
− | + | और कान्ह को डराती उठा बन की सांटियां॥ | |
− | + | जब कान्ह जी जसोदा से करते यही बयां। | |
− | + | तुम सच न जानो माता, यह सारी हैं झूटियां॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥28॥ | |
− | + | माता कभी यह मेरी छुंगलिया छुपाती हैं। | |
− | + | जाता हूं राह में तो मुझे छेड़ जाती हैं॥ | |
− | + | आप ही मुझे रुठाती हैं आपी मनाती हैं। | |
− | + | मारो इन्हें यह मुझको बहुत सा सताती हैं॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥29॥ | |
− | + | माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं। | |
− | + | गाने में अपने सथ मुझे भी गवाती हैं॥ | |
− | + | सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं। | |
− | + | आप ही तुम्हारे पास यह फ़रयादी<ref>गुहार लेकर</ref> आती हैं॥ | |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥30॥ | |
− | सब | + | एक रोज मुंह में कान्ह ने माखन झुका दिया। |
− | गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो | + | पूछा जसोदा ने तो वहीं मुंह बना दिया॥ |
− | दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो | + | मुंह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया। |
− | तुम भी | + | एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया॥ |
− | + | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | |
− | + | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥31॥ | |
+ | |||
+ | थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह। | ||
+ | मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल में चाह॥ | ||
+ | उनको जो देखता था सो कहता था वाह-वाह। | ||
+ | ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह॥ | ||
+ | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | ||
+ | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥32॥ | ||
+ | |||
+ | सब मिलके यारो किशन मुरारी की बोलो जै। | ||
+ | गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै॥ | ||
+ | दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै। | ||
+ | तुम भी ”नज़ीर“ किशन बिहारी की बोलो जै॥ | ||
+ | ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन। | ||
+ | क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥33॥ | ||
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14:38, 19 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
यारो सुनो! यह दधि के लुटैया का बालपन।
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन॥
मोहन सरूप निरत करैया का बालपन।
बन-बन के ग्वाल गोएँ चरैया का बालपन॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥1॥
ज़ाहिर में सुत वह नन्द जसोदा के आप थे।
वर्ना वह आप माई थे और आप बाप थे॥
पर्दे में बालपन के यह उनके मिलाप थे।
जोती सरूप कहिये जिन्हें सो वह आप थे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥2॥
उनको तो बालपन से न था काम कुछ ज़रा।
संसार की जो रीति थी उसको रखा बजा॥
मालिक थे वह तो आपी उन्हें बालपन से क्या।
वां बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक था॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥3॥
मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ यां सरे।
चाहे वह नंगे पांव फिरे या मुकुट धरे॥
सब रूप हैं उसी के वह जो चाहे सो करे।
चाहे जवां हो, चाहे लड़कपन से मन हरे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥4॥
बाले हो व्रज राज जो दुनियां में आ गए।
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गए॥
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए।
इक यह भी लहर थी कि जहां को जता गए॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥5॥
यूं बालपन तो होता है हर तिफ़्ल<ref>बच्चा</ref> का भला।
पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था॥
इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या।
क्या जाने अपने खेलने आये थे क्या कला॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥6॥
राधारमन तो यारो अ़जब जायेगौर<ref>विचार करने योग्य</ref> थे।
लड़कों में वह कहां है, जो कुछ उनमें तौर थे॥
आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे।
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥7॥
वह बालपन में देखते जीधर नज़र उठा।
पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम सा॥
उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो आ।
दंडवत ही वह करता था माथा झुका झुका॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥8॥
पर्दा न बालपन का वह करते अगर ज़रा।
क्या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता॥
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका।
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥9॥
मोहन, मदन, गोपाल, हरी बंस, मन हरन।
बलिहारी उनके नाम पै मेरा यह तन बदन॥
गिरधारी, नन्दलाल, हरि नाथ, गोवरधन।
लाखों किये बनाव, हज़ारों किये जतन॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥10॥
पैदा तो मधु पुरी में हुए श्याम जी मुरार।
गोकुल में आके नन्छ के घर में लिया क़रार<ref>ठहराव</ref>॥
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार<ref>न्यौछावर</ref>।
माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥11॥
जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल व्रज राज।
सबके गले के कठुले थे और सबके सर के ताज॥
सुन्दर जो नारियां थीं वह करतीं थी कामो-काज।
रसिया का उन दिनों तो अजब रस का था मिज़ाज॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥12॥
बदशक्ल से तो रोके सदा दूर हटते थे।
और खु़बरू को देखके हंस-हंस चिमटते थे॥
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बंटते थे।
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥13॥
अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयां करूं।
या मीठी बातें मुंह से निकलना बयां करूं॥
या बालकों की तरह से पलना बयां करूं।
या गोदियों में उनका मचलना बयां करूं॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥14॥
पाटी पकड़के चलने लगे जब मदन गोपाल।
धरती तमाम हो गई एक आन में निहाल<ref>समृद्ध</ref>॥
बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल।
आकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥15॥
थी उनकी चाल की तो अ़जब यारो चाल-ढाल।
पांवों में घुंघरू बाजते, सर पर झंडूले बाल॥
चलते ठुमक-ठुमक के जो वह डगमगाती चाल।
थांबें कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥16॥
पहने झगा गले में जो वह दखिनी चीर का।
गहने में भर रहा गोया लड़का अमीर का॥
जाता था होश देख के शाहो वज़ीर का।
मैं किस तरह कहूं इसे छोरा अहीर का॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥17॥
जब पांवों चलने लागे बिहारी न किशोर।
माखन उचक्के ठहरे, मलाई दही के चोर॥
मुंह हाथ दूध से भरे कपड़े भी शोर-बोर।
डाला तमाम ब्रज की गलियों में अपना शोर॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥18॥
करने लगे यह धूम, जो गिरधारी नन्द लाल।
इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल बाल॥
माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल।
दी अपनी दधि की चोरी की घर घर में धूम डाल॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥19॥
थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा।
जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर में जा फिरा॥
माखन मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया।
कुछ खाया, कुछ ख़राब किया, कुछ गिरा दिया॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥20॥
कोठी में होवे फिर तो उसी को ढंढोरना।
गोली में हो तो उसमें भी जा मुंह को बोरना॥
ऊंचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना।
पहुंा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥21॥
गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहां।
और उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले हां॥
मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियां।
खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूंटियां॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥22॥
गर मारने को हाथ उठाती कोई ज़रा।
तो उसकी अंगिया फाड़ते घूसे लगा लगा॥
चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा।
हर तरह वां से भाग निकलते उड़ा छुड़ा॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥23॥
गुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर।
तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर॥
जो आपी लाके धरती वह माखन कटोरी भर।
गुस्सा वह उनका आन में जाता वहीं उतर॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥24॥
उनको तो देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं।
घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं॥
ज़ाहिर में उनके हाथ से वह गुल मचाती थीं।
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥25॥
कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाऐंगे।
श्रीकृष्ण इसी बहाने हमें मुंह दिखाऐंगे॥
और जो हमारे घर में यह माखन न पाऐंगे।
तो उनको क्या ग़रज है यह काहे को आऐंगे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥26॥
सब मिल जसोदा पास यह कहती थी आके बीर।
अब तो तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर॥
देता है हमको गालियां फिर फाड़ता है चीर।
छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥27॥
माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियां।
और कान्ह को डराती उठा बन की सांटियां॥
जब कान्ह जी जसोदा से करते यही बयां।
तुम सच न जानो माता, यह सारी हैं झूटियां॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥28॥
माता कभी यह मेरी छुंगलिया छुपाती हैं।
जाता हूं राह में तो मुझे छेड़ जाती हैं॥
आप ही मुझे रुठाती हैं आपी मनाती हैं।
मारो इन्हें यह मुझको बहुत सा सताती हैं॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥29॥
माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं।
गाने में अपने सथ मुझे भी गवाती हैं॥
सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं।
आप ही तुम्हारे पास यह फ़रयादी<ref>गुहार लेकर</ref> आती हैं॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥30॥
एक रोज मुंह में कान्ह ने माखन झुका दिया।
पूछा जसोदा ने तो वहीं मुंह बना दिया॥
मुंह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया।
एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥31॥
थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह।
मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल में चाह॥
उनको जो देखता था सो कहता था वाह-वाह।
ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥32॥
सब मिलके यारो किशन मुरारी की बोलो जै।
गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै॥
दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै।
तुम भी ”नज़ीर“ किशन बिहारी की बोलो जै॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥33॥