भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कालिन्दी के तीर / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:33, 30 जनवरी 2016 का अवतरण
कालिन्दी के तीर, यहि विधि लीला नवल नव।
राधा श्री बलबीर, वृन्दावन मैं करत निति॥
मंगल राधा श्याम, मंगल मैं वृन्दाविपिन।
मंगल कुंज मुदाम, मंगल बद्रीनाथ द्विज॥
मंजुल मंगल मूल, जुगल सुमंगल पाठ यह।
पढ़त रहत नहिं सूल, जुगल जलज पद अलि बनत॥