भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मंगलाचरण - 4 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

18:00, 30 जनवरी 2016 का अवतरण

हेरत दोउन को दोऊ औचकहीं मिले आनि कै कुंज मझारी।
हेरतहीं हरिगे हरि राधिका के हिय दोउन ओर निहारी॥
दौरि मिले हिय मेलि दोऊ मुख चूमत ह्वै घनप्रेम सुखारी।
पूरन दोउन की अभिलाख भई पुरबैं अभिलाख हमारी॥