भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जाड़काल की क्रीड़ा / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमघन |संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=प्रेमघन | + | |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |
|संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' | |संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatBrajBhashaRachna}} |
<poem> | <poem> | ||
जाड़न मैं लखि सब कोउन कहँ तपते तापत। | जाड़न मैं लखि सब कोउन कहँ तपते तापत। |
12:36, 2 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
जाड़न मैं लखि सब कोउन कहँ तपते तापत।
कोऊ मड़ई मैं बालक गन कौड़ा बिरचत॥
विविध बतकही मैं तपता अधिकाधिक बारत।
जाकी बढ़िके लपट छानि अरु छप्पर जारत॥
कोलाहल अति मचत भजत तब सब बालक गन।
लोग बुझावत आगि होय उद्विग्न खिन्न मन॥
खोजत अरु जाँचत को है अपराधी बालक।
पै कछु पता न चलत ठीक है कहा, कहाँ तक॥
न्याय मोलवी साहब ढिग जब बैठत याको।
अपराधी ता कहँ सब कहत, दोष नहिं जाको॥
न्याय न जब करि सकत मोलवी गहि शिशुगन सब।
सटकावत सुटकुनी खूब सबकी पीठन तब॥