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वेद बने बरही बर बृन्द, रटै शुक नारद से जस जायक।
व्यास विरंचि सुरेस महेसहु, के हिय अम्बर बीच बिहारक॥
भक्तन के अघ ओघ भयंकर, गीषम को त्रय ताप विनासक।
सोई दया बरसै घन प्रेम, भरो घन प्रेम रटै तुव चातक॥