भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रार्थना - 14 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatBrajBhashaRachna}} | {{KKCatBrajBhashaRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | कुछ कठिनाई की कहौ तो | + | कुछ कठिनाई की कहौ तो कौन समता है, |
::करद कटाछन की काट किहि तौर है। | ::करद कटाछन की काट किहि तौर है। | ||
मृदु मुसुक्यानि की मजा औ माधुरी अधर, | मृदु मुसुक्यानि की मजा औ माधुरी अधर, |
12:04, 3 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
कुछ कठिनाई की कहौ तो कौन समता है,
करद कटाछन की काट किहि तौर है।
मृदु मुसुक्यानि की मजा औ माधुरी अधर,
पिय को सजोग सुख और किहि ठौर है॥
प्रेमघनहूँ को त्यों पियूष वर्षा विनोद,
अनुभव रसिक बिचारैं करि गौर है।
रहनि सहनि सुमुखीन की सुजैसैं और,
वैसैं सुकवीन की कहनि कछु और है॥