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आनन इन्दु अमन्द चुराय, चकोर चितैं ललचाय न टालो।
ठोढ़ी गुलाब प्रसून दुराय, मलिन्दन लोचन सोचन सालो॥
ह्वै घनप्रेम दया बरसी, रस के बस बानि अनीति सँभालो।
रूप अनूपम देहु दिखाय, दया करि हाय न घूँघट घालो॥