भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पावस - 1 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:33, 3 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

रट दादुर चातक मोरन सोर, सुने सजनी हियरा हहरैं।
जुरि जीगन जोति जमात अरी, विरहागिन की चिनगीन झरैं॥
घनप्रेम पिया नहिं आये चलौ, भजि भीतरैं काली घटा छहरैं।
लखि मैन बहादुर बादर के, कर सों चपला असि छूटि परैं॥