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"दीवाना कहके कोई मुझे छेड़ता नहीं / कांतिमोहन 'सोज़'" के अवतरणों में अंतर
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दीवाना कहके कोई मुझे छेड़ता नहीं । | दीवाना कहके कोई मुझे छेड़ता नहीं । | ||
− | + | यारो को अपने ज़ौक़े-तमाशा रहा नहीं ।। | |
कल ज़िन्दगी मिली तो बहुत शर्मसार थी | कल ज़िन्दगी मिली तो बहुत शर्मसार थी | ||
जग में किसी ने उसपे भरोसा किया नहीं । | जग में किसी ने उसपे भरोसा किया नहीं । | ||
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+ | मैंने वफ़ा जो की तो निभाए चला गया | ||
+ | कैसे कहूँ कि इश्क़ में मेरी खता नहीं । | ||
हँसता था बोलता था कभी चीख़ता भी था | हँसता था बोलता था कभी चीख़ता भी था | ||
बस मैं तेरे बग़ैर कभी जी सका नहीं । | बस मैं तेरे बग़ैर कभी जी सका नहीं । | ||
− | मैं | + | चाहें तो आप भी इसे दीवानगी कहें |
− | + | मंज़िल पुकारती रही पर मैं रूका नहीं । | |
− | + | दीखा नहीं ज़रूर था दामन पे मेरे दाग़ | |
− | + | आख़िर मैं आदमी था कोई देवता नहीं । | |
हैरां था चारागर भी पशेमां था सोज़ भी | हैरां था चारागर भी पशेमां था सोज़ भी | ||
− | + | दिल में हरेक तीर था तीरे-वफ़ा नहीं ।। | |
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16:46, 6 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
दीवाना कहके कोई मुझे छेड़ता नहीं ।
यारो को अपने ज़ौक़े-तमाशा रहा नहीं ।।
कल ज़िन्दगी मिली तो बहुत शर्मसार थी
जग में किसी ने उसपे भरोसा किया नहीं ।
मैंने वफ़ा जो की तो निभाए चला गया
कैसे कहूँ कि इश्क़ में मेरी खता नहीं ।
हँसता था बोलता था कभी चीख़ता भी था
बस मैं तेरे बग़ैर कभी जी सका नहीं ।
चाहें तो आप भी इसे दीवानगी कहें
मंज़िल पुकारती रही पर मैं रूका नहीं ।
दीखा नहीं ज़रूर था दामन पे मेरे दाग़
आख़िर मैं आदमी था कोई देवता नहीं ।
हैरां था चारागर भी पशेमां था सोज़ भी
दिल में हरेक तीर था तीरे-वफ़ा नहीं ।।