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"अब के ऐसा दौर बना है / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
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+ | (मासिक वर्तमान साहित्य, अगस्त 2009) |
19:19, 10 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
अब के ऐसा दौर बना है
हर ग़म काबिले-गौर बना है
उसके कल की पूछ मुझे, जो
आज तिरा सिरमौर बना है
फिर से चाँद को रोटी कहकर
आँगन में दो कौर बना है
बंद न कर दिल के दरवाज़े
ये हम सब का ठौर बना है
इस्कूलों में आए जवानी
बचपन का ये तौर बना है
तेरी-मेरी बात छिड़ी तो
फिर क़िस्सा कुछ और बना है
झगड़ा है कैसा आख़िर, जब
दिल्ली-सा लाहौर बना है
(मासिक वर्तमान साहित्य, अगस्त 2009)