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"इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर

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दो-एक चरागों को बुझाया न गया है
 
दो-एक चरागों को बुझाया न गया है
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(लफ़्ज़ सितम्बर-नवम्बर 2011, समावर्तन जुलाई 2014 "रेखांकित")

20:32, 11 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है
सबको ये मगर राज़ बताया न गया है

पर्दे की कहानी है ये पर्दे की ज़ुबानी
बस इसलिए पर्दे को उठाया न गया है

हैं भेद कई अब भी छुपे क़ैद रपट में
कुछ नाम थे शामिल सो दिखाया न गया है

अम्बर की ये साजिश है अजब, चाँद के बदले
दूजे किसी सूरज को उगाया न गया है

हर्फ़ो की ज़ुबानी हो बयां कैसे वो क़िस्सा
लिक्खा न गया है जो सुनाया न गया है

कुछ अहले-ज़ुबां आए तो हैं देने गवाही
आँखों से मगर खौफ़ का साया न गया है

ये रात है नाराज़ जो देखा कि हवा से
दो-एक चरागों को बुझाया न गया है



(लफ़्ज़ सितम्बर-नवम्बर 2011, समावर्तन जुलाई 2014 "रेखांकित")