भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पावस - 12 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:55, 22 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

जेवत जराऊ जोति जीगन जनात किल,
किंकिनी लैं कूकनि मयूरन की डार डार।
सारी स्यामताई पै किनारी चंचला की लखि,
प्रेमी चातकन गन दीनो मन वार वार॥
पुरवाई पवन प्रभाय छहराय छवि,
देखो तो दिखात औ दुरत चंद बार बार।
बदन विलोकन को रजनी रमनि,
बस प्रेमघन घूँघटैं रही हैं जनु टार टार॥