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"तू जो मुझसे जुदा नहीं होता / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=गौतम राजरिशी | |रचनाकार=गौतम राजरिशी | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी |
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तू जो मुझसे जुदा नहीं होता | तू जो मुझसे जुदा नहीं होता | ||
− | मैं ख़ुदा से | + | मैं ख़ुदा से खफ़ा नहीं होता |
ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते | ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते | ||
− | तो इतना | + | तू तो इतना बड़ा नहीं होता |
− | + | चाँद मिलता न राह में उस रोज | |
− | + | इश्क़ का हादसा नहीं होता | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
पूछते रहते हाल-चाल अगर | पूछते रहते हाल-चाल अगर | ||
− | फ़ासला | + | फ़ासला यूं बढ़ा नहीं होता |
छेड़ते तुम न गर निगाहों से | छेड़ते तुम न गर निगाहों से | ||
− | मन मेरा मनचला नहीं होता | + | मन मेरा मनचला नहीं होता |
होती हर शै पे मिल्कियत कैसे | होती हर शै पे मिल्कियत कैसे | ||
− | तू मेरा गर हुआ नहीं होता | + | तू मेरा गर हुआ नहीं होता |
कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम | कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम | ||
− | क्या करूँ, हौसला नहीं होता | + | क्या करूँ, हौसला नहीं होता |
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+ | (अनन्तिम, अप्रैल-जून 2011) |
19:26, 7 मार्च 2016 के समय का अवतरण
तू जो मुझसे जुदा नहीं होता
मैं ख़ुदा से खफ़ा नहीं होता
ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते
तू तो इतना बड़ा नहीं होता
चाँद मिलता न राह में उस रोज
इश्क़ का हादसा नहीं होता
पूछते रहते हाल-चाल अगर
फ़ासला यूं बढ़ा नहीं होता
छेड़ते तुम न गर निगाहों से
मन मेरा मनचला नहीं होता
होती हर शै पे मिल्कियत कैसे
तू मेरा गर हुआ नहीं होता
कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम
क्या करूँ, हौसला नहीं होता
(अनन्तिम, अप्रैल-जून 2011)