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"ज्यों माँ मुस्कुराया करती थी / रति सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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खिल उठती<br><br>
 
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मैंने करछी को छोड़ शन्दों को उठा लिया--<br><br>
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" वह मुस्कुराती है, ज्यों माँ मुस्कुराया करती थी"
 
" वह मुस्कुराती है, ज्यों माँ मुस्कुराया करती थी"

23:29, 19 मई 2008 का अवतरण

वह मुस्काई
मैं उसके लिए उपमाएँ ढूंढ़ने लगी
खिली धूप, लिली का फूल
चमकती चांदनी...
सभी उपमाएँ बासी लगतीं हैं मुझे

सोचा कुछ नई उपमाएँ खोजूँ
रुकी हुई घड़ी का चल पड़ना
मेल बाक्स में किसी भूले बिसरे का ख़त
कस कर लगी भूख के सामने रोटी-चटनी

नहीं, मुझे कोई भी उपमान जमते नहीं

मैंने सभी शब्दों विचारों को सहेज कर रख दिया
रसोई में जाकर लगी दूध में चावल डालने
तभी चाल के बीच से माँ की मुस्कुराहट दिखाई दी
तानों, उलाहनों को पार कर
खिलती मुस्कुराहट, जो अमरूद के साथ काली मिर्च-नमक देख कर भी
खिल उठती

मैंने करछी को छोड़ शब्दों को उठा लिया--

" वह मुस्कुराती है, ज्यों माँ मुस्कुराया करती थी"