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पांचजन्य फूकलकै कृष्णें, देवदत्त अर्जुन ने
पौण्ड्रदध्म जे महाशंख ऊ महाभयंकर, भीमें
धर्मराज ने विजय शंख पर हुमची देलकै फूक
लहरी उठलै कौरव-दल में हलचल-खलबल हूक।
एक्के साथें शंख पणव डंका भेरी सब बजलै
कबच शरासन अस्त्र-शस्त्र लै वीर बाँकुरा सजलै
हाथी के चिग्घाड़ अश्ब के हिनहिंन सें आकाश
काँपी उठलै प्रकृति सामने देखी महा विनाश।
सूर्य लाल, चन्द्रमा श्वेत, मंगल रक्तिम, गुरु पीत
रक्तश्याम बुध, उजरॅ शुक्कुर, शनि अंजन के मीत
फाड़ी आँख सभैं ताकै छै धरती के माया केॅ
आलोड़ित अशान्त सागर में महाप्रलय छाया केॅ
लेकिन शान्त हिमालय नाखीं हेम किरीट-कवच में
मने-मने भीष्में तौललकै सब सम्भार पलक में।
डोरी कसी धनुष के साधलकै हल्का टंकार
महागीत गाबै सें पहिने वीणा के झंकार
सहसा मेघ गरजलै जेना-सिंहनाद भीमॅ के
टूटी पड़लै दल पर मानॅ मछलोका मीनॅ के
या पण्डुक के जेरा पर भुखलॅ खुरछनॅ बाझ
छरभर-छरभर कौरव-सेना, खरभर-खरभर साज।
रथी रथी सें पैदल पैदल सें, हाथी हाथी सें
घुड़सवार सें घुड़सवार भिड़लै धारौ-पाँती सें
छप-छप-छप तलवार गदा के टक्कर धनु टंकार
लहुवॅ के टोंटी छुटलै बनलै बरसा के धार।
भाला के मारॅ सें हाथी रहो-रहो चिग्घाड़ै
हुमकी-हुमकी वीर बाँकुराँ दुश्मन छाती फाड़े
रथ के पहिया टूटै घोड़ा बेदम खाय पछाड़
पूछ उठैने दलने भागै हाथी बिना सवार।
गुद्दीछिलकै कहीं बनै मुण्डी सदका पिचकारी
बहै अलेरॅ गध बनी केॅ भुरकुश भोंटी झारी
रूण्ड-मुण्ड बिलगो केॅ नाँचै भाँसे लाय पछाड़
हाथी के गोड़ॅ के नीचें कड़कड़-तड़तड़ हाड़।
चतुरंगी सेना में मचलै भारी मारा-मारी
घोड़ा कटलै कहीं कहीं गिरलै ओकरॅ असवारी
कहीं पदातिक भागै जीवन के राखी केॅ मोह
कहीं पुरानॅ खार उतारै लेॅ दुशमन के टोह।
किकियाबै छै कहीं दर्द सें मांगै ‘पानी-पानी’
सुनबैया नै कोय सभै के अपने-आप कहानी
कोन आपनॅ कोन पराया मिटलै सब पहचान
कुरूक्षेत्र के पोर-पोर में जागत महा मशान।
माथा सें दिनमान सँसरलै पछियारी डालॅ पर
बल पड़लै कौरव-सेनानी के विशाल भालॅ पर
ढुकलै पाण्डव के सेना में मचलै हाहाकार
चारो दीश झकाझक विद्युत - रेखा के संचार।
घूमी-घूमी भीष्में छोड़ै छै लक्-लक बाणॅ केॅ
पड़लै संकट भारी पाण्डव-सेना के प्राणॅ केॅ
हुनकॅ रथ दौड़ै जेना मेघॅ में दौड़ै चान
रस्ता छोड़ै रथी-सारथी पाबै खातिर प्राण।
कत्तेॅ रथ के जुआ-पताका कत्तेॅ घोड़ा कटलै
कत्ते हाथी चिग्घाड़ै सब के कुंभस्थल फटलै
खुरछी केॅ अभिमन्यू देखलक बढ़तं बेरोक
परदादा के कहर मचंतें, चढ़लै मन में रोख।
दौड़ी पड़लै वीर बाँकुरा रथ वै दिश मोड़ी केॅ
रोके खातिर राहु, तुरत सोझॅ पाँती तोड़ी के
देल्कै कान तलक तानी केॅ धन्वा में टंकार
युवा सिंह रं बृद्ध वीर पर उर्जस्वल हुंकार।
कर्णिकार चिन्हित स्वर्णिम ध्वज घोड़ा गोलॅ-गोलॅ
हाथॅ में धनुवान रंथ पर बाल उमर के सोलॅ
खाढ़ॅ होलै भीष्मॅ के आगूँ रोकी केॅ राह
मानॅ सिंहॅ के बेटाँ छेंकलक महाबराह।
खींचलकै धनुषॅ के डोरी वें अलात चक्रॅ रं
झर-झर, झर-झर तीर बरसनै सोझॅ रं, बक्रॅ रं
काटी देल्कै आसमान में परदादा के बाण
पैहले चोटॅ में देॅ देलकै खुद वीरत्व प्रमाण।
ठनलै महासमर बीरॅ के मानॅ अग्निपरीक्षा
परशुराम के आगूँ खाढ़ॅ छै कृष्णॅ के दीक्षा
रक्षाव्यूह पितामह के दुर्मुख, कृतवर्मा शल्य
चौकस होलै कृपाचार्य विशति आरो सब मल्ल।
रण-कौशल के अपना-अपनी परिचय सबने दै में
कोय कसर नै राखेलकै अभिमन्यू पर मारै में
लेकिन सबके वाण निवारी, पाण्डव-कुल के मान
राखी, धजा-पताका काटी तोड़लकै अभिमान।
पाँच वाण सें पाँचो महारथी केॅ बेधी देलकै
एक वाण सें परदादा के धजा-पताका लेलकै
फेरू एक वाण छोड़लकै जे में रत-रत धार
भीष्में ने मुस्की झेललकै परपोता के वार
गद्गद् होलै बृद्ध वीर रण-कौशल केॅ देखी केॅ
अर्जुन के बेटा अर्जुन रं महावीर लेखी केॅ
महाअस्त्र संघान करलकै देखै लेॅ परिणाम
पाण्डव-सेना में मचलै हलचल भारी कुहराम
धृष्टदुम्न सात्तकी भीम केकय के पांच कुमार
उत्तर-श्वेत विराट पुत्र द्वय वीरॅ के सरदार
अभिमन्यू के रक्षा खातिर वै दिश सभे लपकलै
उत्तर के दन्तार शल्य के रथ पर चढ़ी ठमकलै।
टूटी गेलै रथ जुआठ पर शक्ति शल्य के आबी
उत्तर के छाती में धँसलै, फेरू अवसर पाबी
काटी देलकै सूँड़, चिरकलॅ घुरमैलै गजराज
दिग दिगन्त में पसरी गेलै दर्दीला आवाज।
मृत जानी भैया केॅ, उठलै रोख श्वेत केॅ भारी
दम लेबै आबेॅ भैया के दुश्मन केॅ संहारी
कृतवर्मा के रथ पर होलै दौड़ी शल्य सवार
श्बेत लपकलै वहेॅ तरफ करने वारॅ-पर-वार।
जर्जर शल्य श्वेत के वाणॅ सें रथ पर घुरमेंलै
कृतवर्मा दुर्मुख कृप विशति सब-के-सब लरमैलै
ध्यान ीांग होलै भीष्मॅ के मोड़ी रथ के रास
छारी देलकै वाणॅ सें छन में सौंसे आकाश।
ठनलै श्वेत-भीष्म के संगर महाभयंकर भारी
कभी श्वेत के कभी भीष्म के बरियारी के पारी
दोनों हालै लर्त्तमान दोनों के शर संधान
एक-एक सें बढ़ी अजूबा रण-कौशल के ज्ञान
प्रगट करै दोनों ने, गुर के नया पोटरी खोलै
एक-दोसरा के बाणॅ सें रथ पर जर्जर होलै
क्षितिज किनारें आबा गेलॅ लाल सूर्य भगवान
भीष्में सोचलकै लेना छै आय श्वेत के जान।
अभिमंत्रित दिव्यास्त्र निकाली मारलकै संधानी
जाय श्वेत के छाती पर जे चोट करलकै हानी
पंखहीन गरुडॅ रं गिरजै रथ के ऊपर वीर
खुशी उमड़लै कुरुसेना में, पाण्डव-सैन्य अधीर।
फेरू मुडत्रलै तुरत दोसरॅ दिश रथ केॅ मोड़ी केॅ
ढुकलै पाण्डव के सेना में व्यूह-व्यूह तोड़ी केॅ
बोली-बोली नाम करलकै वीरॅ के संहार
भगदड़ मचलै पाण्डब-दन में मचलै हाहाकार
पहिलॅ दिन के युद्ध उसरनै चललै सैन्य शिविर में
संझकीं सिंहॅ के जेरॅ जेना की गुहा गभिर में
थकचुन्नॅ तन, मन में राखी केॅ अदम्य उत्साह,
धर्मक्षेत्र में मरै-जिपै के रण जीतै के चाह।
धर्मराज बेचैन कहीं आँखी सें नोन परेॅले
धृऽटदुम्न सात्त की भीम अर्जुन सब साथें ऐलै
साँझ-शिविर में वहाँ, जहाँ चिन्ता में डुबलॅ कृष्ण
सब के मन में एक समैलॅ महाभयंकर भीष्म।
”वासुदेव! नै छे उबार पाण्डव-सेना के रण में
देखो केॅ वीरता पितामह के उपजै भय मन में
महाकठिन ई समर जीतना लागै छै दुश्वार
पाण्डव के भागॅ में नै छै तनिक विजय-आसार।
व्यर्थ महासहार मचाना लोभॅ में आबी केॅ
महाअमंगल देना धरती केॅ; कुछ नै पाबी केॅ
ध्वसॅ सें करना छै अच्छा जीवन के सिंगार
कुरूक्षेत्र छोड़ो अपनाना जंगल के सहचार।“
धर्मराज के गहन उदासी के कारण जानी केॅ
प्रगट कहलकै क्षात्रधर्म मर्मस्थल पहचानी केॅ
फेरू सेनापति केॅ कृष्णें देल्कै नव उत्साह
नया सिरा सें सबके मन में भरलै रण के चाह।
”एक भीम ने प्रगट करलकै आय पराक्रम रण में
गहन उदासा रहलै सोंसे दिन अर्जुन के मन में
छोड़ेॅ पड़तै अर्जुन केॅ यै कोमलता के रास
तभियें लौटेॅ सकेॅ परैलॅ सेना के विश्वास
कल दुर्जय संग्राम मचाना, क्रींचव्यूह छै रचना
मुश्किल होतै कौरव के पाण्डव हाथॅ सें बचना।“
-सेनापति ने धर्मराज केॅ देॅ केॅ ई संबोध
अर्जुन केॅ संकेत करलकै-लेना छै प्रतिशोध।
व्यूहॅ-पर-सजलै व्यूह पणव रणभेरी
बजलै डंका अविराम गगन केॅ घेरी
काँपी उठलै दिक्पाल काल थर्रैलै
अनगिन जीवन निर्जीव, आँख पथरैलै।
अंकुश तोमर नाराच परिघ छितरैलॅ
कंपन मुगदर मुसलाँठ कणप कचियैलॅ
ध्वज शूल शक्ति सुप्रास कवच पड़लॅ छै
छाती पर कुरूक्षेत्र के सब जड़लॅ छै।
लहुवॅ के नद के हाथी-अश्व किनारॅ
हरखित रोमांचित गीधॅ-गिदर रखबारॅ
अर्जुन ने प्रगट करलकै कौशल रण में
जेना क्रोधित मृगराज दहाड़ वन में।
खरभर बचलॅ खुचलॅ कौरव के सेना
भागे छै हरिण-सियारॅ जेरॅ जेना
जे-जे उलाँक बरियाँठॅ बीर कहाबै
अर्जुन के आगूँ आबी प्राण गमाब।
चुनलॅ-चुनलॅ योद्धा सुरधाम सिधैलै
बस आठ दिवस में कौरव-दल खलियैले।
मानॅ कृतान्त उतरी ऐलॅ छै राण में
भरलै अमर्ष-भय दुर्योधन के मन में।
”पाण्डव के प्रति अति कोमलचित्र वृद्ध पितामह वीर
समरभूमि में सहज बिगाड़ै कौरव के तकदीर
अपनेती सोहै छै सबदिन युद्धॅ सें बाहर ही
पर-अमष तें हा दुश्मन केॅ जीतै रण में बीर।
विनय करॅ जे समर-विरत भे देवे रण-कौशल केॅ
आज्ञा दै केॅ युद्ध करै के हमरॅ विक्रम-बल केॅ
आठ दिवस के कसर निकाली बदला दियै चुकाय
दशा निहारी कौरव-दल के घोर कष्ट छ भाय।
कर्णॅ े सुविचार सुनी मनसी गेल दुर्योधन
बृद्ध पितामह के तम्बू में भय-आक्रान्त मनेमन
जोड़ो हाथ प्रणाम करलकै सदा सेनापति केॅ
राखलकै विषन्न भावॅ सें सेना के दुर्गति केॅ।
पाण्डुपुत्र पर कृपाभाव कुछ समझॅ में आबै छै
लेकिन दु्रपद विराट, सात्तकी पर ई नै भावै छै
तीन पुस्त सें रक्षित छै कुल करने छिपै बचाव
कहाँ परेलै आय पितामह भार्गव-जयो प्रभाव?
कर्ण विमुख छै युद्धॅ सें लागो केलॅ छै रोक
अर्जुन के जानी दुश्मन एत्ते टा ओकरॅ चोक
मौका पाबी कौरव-सेना पर अर्जुन झुकरै छ
कोमलता कारनें दिनेदिन कुरुसेना हुकरै छै।
ई असह्य परिणाम पितामह करियै कोय उपाय
आज्ञा द अंगेश वीर केॅ कुरुकुल लिय बचाय।“
मर्म-वचन दुर्योधन के संयम सें श्रवण करी केॅ
आर्त्त बुझी केॅ, निर्विकार मन कोमल नेह भरी क
हाथ बुलाय सहज सेबलकै तन के मन के घाव
साफ-साफ राखलकै आगूँ खोली केॅ दृढ़भाव।
”एक कर्ण की सॅ कर्णे नै वार सम्हारेॅ पारेॅ
देव-असुर-गन्धर्व मिली केॅ एक पार्थ सें हार
ऊ अजेय छै पुत्र युद्ध में कहने छिहौं सदाय
तेकरा पर छै नारायण पाण्डव के सबल सहाय।
ब्राह्म ऐन्द्र आग्नेय सौम्य पाशूपत वैष्णव धात्र
वैवस्वत परमेष्ठप बारुण प्रजापत्य सावित्र
जानै सब दिव्यास्त्र त्वाष्ट्र वायच्य वहो वीरे ने
की करतै नाराच अंजलिक वत्सदन्त तीरें ने?
हम्में जानै छीयै कर्णॅ के सब ज्ञान-सिमानॅ
भलें ओकरा तोंहें अतिशय सुभट परम भट मानॅ
कल सें हमरॅ समरभूमि में महाभयानक रूप
देखी लीहॅ, रहतै तोरॅ मन केरॅ अनुरूप।
वचन मोताबिक दस हजार तेॅ रोजे संहारै छीं,
सनमुख रण में महारथी जे-जे आबै मारै छीं
अगर छोड़बै पाण्डव केॅ समरांगन में पाबी केॅ
जे भी कहना-होथौं कहिहॅ फेरू तों आबी केॅ।
जबतक हमरा हाथॅ में रहतै साबुत धनुबाण
तबतक नै यै कुरूक्षेत्र में पाण्डव के कल्याण
भलें कृष्ण रखबारॅ या की स्वयं पुरन्दर आबेॅ
जीतेॅ सकेॅ कभी नै हमरा जे दिव्यास्त्र चलाबेॅ
चरण छुबी केॅ खुशमिजाज दुर्योधन के प्रस्थान
पाण्डव-दल में खबर सुनी कृष्णँ के हड़हड़ प्राण
तुरत जाय रनिवास उठल्कै कान्हा पर कृष्णा केॅ
दौड़े छै जेना प्राणो लै जीवै के तृष्णा केॅ
दम लेल्कै सुनफोड़ निहारी भीष्मॅ के शिविरॅ लग
चरण छुवै के आज्ञा देल्कै देखी केॅ सूनॅ मग
कलकॅ मन्सूबा में डुबलॅ वृद्ध पितामह-पाँव
जाय छुवल्कै दु्रपदसुता ने बिना बतैने नाँव।
चमकी उठलै बृद्ध अचोके, मुख सें शुभआशीष
अचल सुहागिन रहॅ’-निकललै, मुस्कैलै फणशीश
करजोड़ी आगूँ आबो श्यामा के परिचय देल्कै
यही विधि सें प्राणदान पाँचो पाण्डव के लेल्कै।
गोस्सा सें जल-जल गंगासुत बुझी कृष्ण के चाल
जेना कोय निरोत जलधि में उठलै तीव्र भुचाल-
”यदुवंशी! तोंहें धोखा सें प्रण के भंगन करल्हेॅ
कूटनीती सें सत्यनीति के तौंहें गौरव हरल्हेॅ
कुरूक्षेत्र में रहभौं हम्में तोरो प्रण तोड़ो केॅ
शस्त्र उठाना छौं तोरा सारथी-धर्म छोड़ी केॅ।“
थर-थर अन्तर कृष्ण द्रोपदी साथें करी प्रणाम
तेजी सें पाण्डव शिविरॅ दिश साधलकै प्रस्थान।
नौमॅ दिन के युद्ध भयंकर कुरूक्षेत्र में मचलै
भीष्मॅ सें परित्राण-चाह नै, के पाण्डव में बचलै?
द्रुपद, विराट, सात्तकी अर्जुन, भीम, घटोत्कच वीर
धृष्टदुम्न, अभिमन्यु सभे हरसकतॅ सभे अधीर।
पाण्डव-दल में महानाश के दृश्य उपस्थित होलै
सब महारथी के अन्तर भय-आतंकॅ सें डोलै
साँझ-शिविर में सब निराशमन सबके हिम्मत पस्त
”एक भीष्म ने करतै सौंसे महावाहिनी ध्वस्त।
वासुदेव! जों छै पाण्डव केॅ जीत सुनिश्चित करना
सबसें पहिने भीष्म पितामह के लाजिम मरना
तपलॅ दुपहरिया सूरज रं लहलह लहकं आँख
लागै जे पोसलॅ कमल केॅ छन में करतै राख।
या सोंखी धरती के रस केॅ करतै बंजर-ठाही
दावानल रं बनी पसरतै, रचत महातबाही
रुख अच्छा नै वृद्ध पितामह के देखलियै आय
नारायण! हुनकॅ मरनी के खोजॅ कोय उपाय।“
”तीनों-लोकॅ में नै एक्को वीर भीष्म केॅ मारेॅ
हुनकॅ इच्छा के विरोध में जमराझौं नै पारेॅ
भैया! जों चाहै छॅ रक्षा; जल्दी हुनकॅ अन्त
पूछेॅ पड़थौं रस्ता खुद शरणागत बनी तुरन्त।
मलने आँख सुरुज खडु़बैलै कुरूक्षेत्र तीरॅ पर
गिरलै मानॅ चिरिक् अचानक दुर्योधन वीरॅ पर
ई समाद पाबी कौरव दल में मचलै कुहराम
उड़लै सबके होश, सभै के हड़-हड़ हड़-हड़ प्राण!
महारथी अतिरथी सभै केॅ आज्ञा दुर्योधन के
रक्षा करिहॅ सभै मिली केॅ कौरव-कुल-भूषण के
बजलै शंख दुन्दुभी भेरी फाड़ी केॅ असमान
दशर्म दिन के युद्ध दुओ दिश सेना के प्रस्थान।
कृपाचार्य कृतवर्मा शैल्य सुदक्षिण शकुनी सोम
अश्वत्थामा भूरीश्रवा जयद्रथ गुरुवर द्रोण
शल्य विन्द-अनुविन्द दुशासन आरो सब वार के
रक्षा-व्यूह रचलॅ गेलॅ कुरुकुल-तकदीर के।
घमाशान मचलै छुटलै लहुवॅ के धार-धरासॅ
कुरूक्षेत्र के भूम लगै काली-जिह्वा के नासॅ
खट-खट ठक-ठक खट्ट खटाखट शूल गदा के टक्कर
दौड़ै रथ चौगिर्द लगाबै हाथी-घोड़ॉ चक्कर।
भीष्मॅ के वाणॅ सें बरसै लप-लप आगिन-शोला
पसरै चारो दीश धुआँ के रेला झरकै चोला
नै देखलकै कभी सुनलकै नै ऐहनॅ वीरत्व
लागै जेना भस्म बनैतै धरती के सब स्वत्व।
कौरव-दल रणमत्त पितामह के रथ केॅ घेरी केॅ
पाण्डव-दल उन्मत्त पितामह के रथ केॅ हेरी कै
जेना अमृत-कलश पर टिकलॅ देव-असुर के ध्यान
एक लक्ष्य बस भीष्म पितामह दोनों के अभियान।
वीर घटोत्कच भीम सात्तकी भैरव-हुंकारी केॅ
बढ़लै आग अनगिनती कौरव-सेना मारी केॅ
वै तरफॅ सें धृष्टदुम्न अभिमन्यु नकुल सहदेव
जेना कुशल नभरिया ने ढौ पर मारलकै खेव।
आगू आगू वीर शिखण्डी अर्जुन के रक्षा में
पहुँची गेलै भीष्म पितामह के दहिना कक्षा में
दुःशासन ने तुरत भरलकै गर्वतॅ हुंकार
गूँजी उठलै गाण्डीवॅ पर बज्रमान टंकार।
थमलै श्वेत कपिध्वज करने शत-शत शर संधान
आग-धुआँ के लपट-झपट में छिपलै धजा-निशान
रोकै खातिर दुःशासन ने आड़लकै जानॅ केॅ
बहुत समय तक रोकॅ की पिपरें ने तूफानॅ केॅ?
गुशल सारथी पार्थ रथीं तोड़लकै रक्षाव्यूह
लर्त्तगान पीछू हटलै कौरब के रथी समूह
चारो दिश सें पाण्डव-सेना सिंहॅ केॅ घेरलकै
दु्रपद कुमार शिखण्डी केॅ जें आगू में हेरलकै।
”निपट निहत्या पर नारी पर युद्ध-विमुख जे वीर
छोड़ै नै छों युद्ध भूमि में शरणागत पर तीर
नारी रहै शिखण्डी पहिले“ - मन में बात चमकलै
बारी देलकै वाण-शरासन रथ पर वहीं ठमकलै
मौका पाबी सभै तरफ सें बरसे लगलै तीर
खाढ़ॅ रहलं, घोर वृष्टि में जेना पर्वत थोर
या कि सत्य, अविचल असत्य के भैरव दुःशासन में
प्रलय काल में योगलीन...... अटल आसन में।
छिन्न कवच गाण्डीव वाण में झर-झर झरना धार
एक तील नै खाली सकठो तीरॅ के भरमार
चकरैलै माथॅ अररैलै रथ सें नीचें वीर
धरती ऊपर शर-सज्जा पर थमलै महाशरीर
थमलै युद्ध अचानक, थाम्ही केॅ घोड़ा के रास
सुरुजदेव निस्तेज, तेसरॅ पहर खिन्न आकाश
दौड़ी पड़लै कौरव-पाण्डव भूली केॅ अभिमान
मोह-तिमिर में कखनू-कखनू जेना उमड़ै ज्ञान।
या अघटन घटला पर मन पर झटका के आघात
अनचोके होलै जन-जन के मन पर बज्र-निपात
धर्मराज-दुर्योधन दोनों एक साथ बेचैन
हहरी उठले प्राण सभै के, सबके भरलै नैन।
झुललॅ माथा के बामादिश खाढ़ॅ पार्थ उदास
तुरत बोलैल्कै कनखी सें दादा ने अपना पास
”वालिश दै देॅ वीर शिरोमणि! मॅन करॅ नै चूर
प्यास बुझाबॅ कौशल सें जे वीरोचित दस्तूर।
गाण्डीवॅ के डोर कसी छोड़ी अभिमंत्रित वाण
देॅ देलकै अर्जुन ने झुललॅ माथा केॅ उपधान
फेरू एक वाण मारलकै धरती के छाती में
भोगवती गंगा-धारा उठलै धारी-पाँती में।
धीरें-धीरें दादा के मुख में गिरलै रसधार
प्रगट बरसलै चिर सहेजलॅ रसलॅ-बसलॅ प्यार
”बॅस करॅ दुर्योधन बेटा! युद्ध करो देॅ बन्द
राखॅ बात नेह के हमरॅ“ -गूँजी उठलै छन्द।
भेलै मौन तुरत समझी केॅ दुर्योधन के भाव
मुख-मंडल पर शान्ति, कहीं नै कोनो चाव-दुराव
‘चितिसत्ता के देन निरन्तर जीवन के संघर्ष’
धरती के भवितव्य बुझी केॅ मन में उगलै हर्ष।
धरलॅ माथॅ शर-सज्जा पर दिव्यभाव में लोन
उर्ध्वरेत चेतना निरंतर सहज साँस सें पोन
जीवन-धारा रं दौड़े छै ठोरॅ पर मुस्कान
काँटा के झुरमुट पर फुललॅ छै गुलाब अम्लान।
मधुमती
अजगुत कथा सुनैल्हेॅ बोलॅ स्वरलोकॅ के हाल
होत होतै बसू-बहुरिया बेचारी बेहाल
काँटे होली होतै, एत्ते दिन वियोग के पीर
........बान्हॉ माश्किल, केना धरो होतै धीर?
सुचेता
बहिना! आधॅ अपन गुजरलेॅ मधुमय स्वरलोकॅ में
पतछिन रहै उछिन्न घड़ी डुबलॅ लाग शोकॅ में
‘ब्रह्मवादिनी’ घुरी-घुरी आबै सँसरी दिवलोक
दानी मानी केॅ अपना केॅ करै बहिनपा सोच।
सतत हियाबै मर्त्तलोक, प्रीतम के त्याग-विराग
देखो-देखी, मन में उमड़ै गढ़ियाबै अनुराग
ऊ दिन शर-सज्जा के पीड़ा बूझी असह-अछोर
”पाप करेॅ के, दण्ड मिलेॅ केकरा“- सोची केॅ लोर
बहलै बेबस अँखी सें, दिव सें छुटल निरधार
एक बुन्द टघरो गेले भीष्मॅ क छुवी कपार
खुनलै आँख चेतना के दिव पर देखो प्रियप्राण
गमकी उठलै चिर सुगध सें ठोरॅ के मुस्कान।