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"खण्ड-7 / मन्दोदरी / आभा पूर्वे" के अवतरणों में अंतर

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ऊ दिन
+
हमरोॅ देश
जबेॅ हम्में हजार तीर सें बिंधलोॅ
+
हमरोॅ दानव बंधु !
तोरोॅ शरीर केॅ देखलेॅ छेलियां
+
जेहनोॅ दिव्य देह
जना साही के शरीर रहेॅ
+
होने मोॅन आरो मस्तिक !
तेॅ हमरा हठासिये
+
जेकरोॅ नै तेॅ
ख्याल आवी गेलोॅ छेलै
+
ज्ञान के बराबरी
तोरोॅ वहा बलिष्ठ देह
+
नै विचार के
जेकरोॅ गर्दन पर
+
नै संस्कृति के
दस हीरा के माला
+
नै संस्कार के
हेने शोभै छेलै
+
नै व्यवहार के !
जेना तोरोॅ दस शीश रहेॅ;
+
प्रतिबिम्ब
+
जना प्रतिबिम्ब नै रहेॅ
+
विरोधी, मूड़िये समझी केॅ
+
काटेॅ
+
दस शीश ।
+
  
के बतैलेॅ छेलै
+
फूल के सुगन्ध सें
आर्यकुल श्रेष्ठ राम केॅ ई बात ?
+
बेकल हुवै वाला दानव
 +
फूले जकां मोॅन राखै वाला दानव
 +
फूले लेॅ सोचै वाला
 +
हमरोॅ द्वीपवासी
 +
संगीत आरो नृत्य में रमै वाला
 +
हमरोॅ देशवासी !
 +
अमृत के वाणी पैलेॅ छै
 +
हमरोॅ सुम्बा !
 +
आय लागै छै
 +
कत्तेॅ युग बीती गेलै
 +
आपनोॅ देश देखलोॅ होलोॅ।
  
आय तोहें हमरोॅ पास नै छोॅ
+
आह
तेॅ याद आवै छै
+
हमरोॅ देश
ऊ मधुयामिनी के बात
+
हमरोॅ द्वीप
हमरोॅ रूप
+
हमरोॅ सुम्बा
हमरोॅ शृंगार
+
जहांकरोॅ राजो
हमरोॅ हास-परिहास
+
विपत्ति पड़ला पर
के अनन्य प्रशंसक
+
सैनिक साथें युद्ध करेॅ पारेॅ
तोहें केना
+
आपने नै
काल के शिकार होय गेलौ ?
+
पड़ोसी देशो लेॅ
धरती पर
+
मरेॅ-खपेॅ पारेॅ,
के छेलै तोरा नाँखी पराक्रमी
+
जहांकरोॅ बूढ़ोॅ-बाप
तपी, ऐश्वर्यवान
+
बेटी लेॅ
आर्यपुत्रा सें कैन्हों केॅ कम नै
+
सब दुख सहेॅ पारेॅ,
जो कमी छेलौं
+
युद्ध करेॅ पारेॅ
तेॅ यहेॅ किµ
+
आरो शांति सें मरेॅ पारेॅ !
भोगे तोरोॅ लेॅ जीवन छेलौं
+
सब तोरोॅ लेॅ
+
तोरा सम्मुख कोय कांही नै,
+
तही तेॅ तोरा लेॅ
+
नै कुबेर छेलौं
+
नै विभीषण।
+
  
आबेॅ लोगें जे कहोॅ
+
वहा देश में
कि विभीषण कुलघाती छेलै
+
हम्में लौटी जैबै
आरो कुबेर दंभी
+
वहांकरोॅ पछुवा हवा
खोजला सें तेॅ सबमें
+
हमरा बुलाबै छै
कुछ--कुछ दोख
+
खेत-खलिहान में अनाज ओसैतें
मिलिये जाय छै।
+
दानव कन्या के हँसी हंकाबै छै
 +
जेना
 +
जोर-जोर सें
 +
हंकैतेॅ रहेॅ समुद्र के शोर
 +
लहरोॅ के संगीत अछोर
 +
खुली केॅ खेलै लेॅ
 +
हांसै लेॅ
 +
नाचै लेॅ
 +
ऊ आत्मा नांखि
 +
जे राजसी-तामसी बन्धन से
 +
मुक्त हुएॅ ।
  
देवताओ के दुख
+
होन्हौं केॅ आबेॅ
अलोपित होय जाय छै
+
हमरोॅ लेॅ की बचलोॅ छै ई लंका में
जो ओकरोॅ व्यवहार
+
जिनगी कथी लेॅ काटबोॅ
स्त्रा के प्रति वाम नै होय छै
+
शंका में
हे लंकाधिपति
+
सहमी-सहमी केॅ
सब इन्द्रिय सें विरत होलौ पर
+
डरी-डरी केॅ
तोहें मानोॅ नै मानोॅ
+
जीते जी मरी-मरी केॅ।
तोरोॅ ई चूक
+
तोरा लेॅ महाकाल बनी गेलै।
+
  
आबेॅ हमरोॅ लेॅ
+
हमरोॅ ऊ विश्वास तेॅ
ई सोना के लंका में
+
वहा दिन मरी चुकलोॅ छै
छेवे की करै  
+
जबेॅ हम्में देखलेॅ छेलियै
हमरा लेॅ,
+
तीनो लोक
नै हमरोॅ दियोर
+
तीनो देवता
नै ननद
+
तीनो शक्ति केॅ
नै भैसुर
+
भयभीत करै वाला
न सेविका
+
की रं लहू सें लथपथ छेलै;
नै परिचारिका
+
जे भुजा पर
कोय कुछ नै।
+
हमरा ओतना विश्वास छेलै
 +
ऊ टुकड़ा-टुकड़ा में
 +
कहाँ-कहाँ गिरलोॅ छेलै
 +
नै जानौ
 +
तबेॅ हम्में सपनौ में
 +
नै सोचलेॅ छेलियै
 +
कि मृत्यु
 +
समय पुरला पर
 +
केकरो नै छोड़ै छै
 +
नै देवता के
 +
नै दानव के
 +
तबेॅ रक्षाधिपे के केना छोडतियै ।
  
कोय कुछ हुवौ नै पारेॅ
+
अच्छा होतै
देश-देश सें
+
कि आरो कोय विश्वास
लूटी केॅ लानलोॅ गेलोॅ
+
हमरोॅ साथ छोड़ी देॅ
ई अपार धन
+
नीलम चट्टानोॅ के नीचें
सोना
+
चिर निद्रा में सुतलोॅ
चांदी
+
हे हमरोॅ प्राण
हीरा-जवाहरात
+
हम्में क्षमा चाहै छी
की लंका के लब्बोॅ अधिपति केॅ
+
ललचैतै नै
+
नया लंकेश्वर कोय्यो बनेॅ
+
विभीषण
+
आकि कुबेर
+
फेनू होतै स्त्रा आरो सम्पत लेॅ युद्ध ।
+
 
+
अपार धन आरो वैभव के मोह
+
भला केकरौ चित्त केॅ
+
शांत रहै दै वाला छै की ?
+
वहू में
+
जे देशोॅ में
+
किसिम-किसिम के लोग बसेॅ
+
कोय दैन्य कुल के
+
कोय असुर कुल के
+
कोय दानव कुल के
+
सब-के-सब
+
बनैलोॅ गेलोॅ बन्दी;
+
भला की सोचतै
+
ई देश के हित।
+
 
+
बान्ही-छान्ही केॅ बनैलोॅ
+
भला के भगत बनलोॅ छै !
+
एक लंकेश्वर की मरलै
+
दूसरोॅ
+
लंकेश्वर होय लेॅ तनलोॅ छै,
+
आरो फेनू
+
जे जहाँ बचलोॅ छै
+
जोॅन-जोॅन सोना के हवेली में
+
दिवंगत लंकेश्वर के
+
विधवा रानी सब,
+
सब बनी जैतै
+
देखतें-देखतें
+
नया लंकेश्वर के रानी
+
युग-युग के कहानी ।
+
 
+
हमरा नै रहना छै
+
ई वैभव-विलास के
+
माया नगरी में
+
जहाँ आदमी के धर्म सें बढ़ी केॅ
+
आदमी के वैभव छै
+
आदमी के ताकत छै
+
जहाँ दास आरो स्त्रा
+
एक्के रं मानलोॅ जाय,
+
बात-बात पर
+
ओकरोॅ ऊपर
+
मुक्का तानलोॅ जाय;
+
वहाँ आरो सब के वास हुएॅ पारेॅ
+
आत्मा केना बसतै
+
 
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22:02, 16 मई 2016 के समय का अवतरण

हमरोॅ देश
हमरोॅ दानव बंधु !
जेहनोॅ दिव्य देह
होने मोॅन आरो मस्तिक !
जेकरोॅ नै तेॅ
ज्ञान के बराबरी
नै विचार के
नै संस्कृति के
नै संस्कार के
नै व्यवहार के !

फूल के सुगन्ध सें
बेकल हुवै वाला दानव
फूले जकां मोॅन राखै वाला दानव
फूले लेॅ सोचै वाला
हमरोॅ द्वीपवासी
संगीत आरो नृत्य में रमै वाला
हमरोॅ देशवासी !
अमृत के वाणी पैलेॅ छै
हमरोॅ सुम्बा !
आय लागै छै
कत्तेॅ युग बीती गेलै
आपनोॅ देश देखलोॅ होलोॅ।

आह
हमरोॅ देश
हमरोॅ द्वीप
हमरोॅ सुम्बा
जहांकरोॅ राजो
विपत्ति पड़ला पर
सैनिक साथें युद्ध करेॅ पारेॅ
आपने नै
पड़ोसी देशो लेॅ
मरेॅ-खपेॅ पारेॅ,
जहांकरोॅ बूढ़ोॅ-बाप
बेटी लेॅ
सब दुख सहेॅ पारेॅ,
युद्ध करेॅ पारेॅ
आरो शांति सें मरेॅ पारेॅ !

वहा देश में
हम्में लौटी जैबै
वहांकरोॅ पछुवा हवा
हमरा बुलाबै छै
खेत-खलिहान में अनाज ओसैतें
दानव कन्या के हँसी हंकाबै छै
जेना
जोर-जोर सें
हंकैतेॅ रहेॅ समुद्र के शोर
लहरोॅ के संगीत अछोर
खुली केॅ खेलै लेॅ
हांसै लेॅ
नाचै लेॅ
ऊ आत्मा नांखि
जे राजसी-तामसी बन्धन से
मुक्त हुएॅ ।

होन्हौं केॅ आबेॅ
हमरोॅ लेॅ की बचलोॅ छै ई लंका में
जिनगी कथी लेॅ काटबोॅ
शंका में
सहमी-सहमी केॅ
डरी-डरी केॅ
जीते जी मरी-मरी केॅ।

हमरोॅ ऊ विश्वास तेॅ
वहा दिन मरी चुकलोॅ छै
जबेॅ हम्में देखलेॅ छेलियै
तीनो लोक
तीनो देवता
तीनो शक्ति केॅ
भयभीत करै वाला
की रं लहू सें लथपथ छेलै;
जे भुजा पर
हमरा ओतना विश्वास छेलै
ऊ टुकड़ा-टुकड़ा में
कहाँ-कहाँ गिरलोॅ छेलै
नै जानौ
तबेॅ हम्में सपनौ में
नै सोचलेॅ छेलियै
कि मृत्यु
समय पुरला पर
केकरो नै छोड़ै छै
नै देवता के
नै दानव के
तबेॅ रक्षाधिपे के केना छोडतियै ।

अच्छा होतै
कि आरो कोय विश्वास
हमरोॅ साथ छोड़ी देॅ
नीलम चट्टानोॅ के नीचें
चिर निद्रा में सुतलोॅ
हे हमरोॅ प्राण
हम्में क्षमा चाहै छी ।