"आपनोॅ बस्ती / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सैंतीस साल नौक्रिया पुरने | |
− | + | गरभू घूरलोॅ आपनोॅ बस्ती | |
+ | उपरोॅ सें गम्भीर देखावै | ||
+ | भीतरे-भीतर हालत खस्ती | ||
− | + | एक टरक पर गोरू काड़ी, लाद, टीन आरो बाछी पड़िया | |
− | + | दोसरा पर बरतन बिछौनोॅ जाँतोॅ, उखरी, खटिया मचिया | |
− | + | दोनों जिव तिन पोती साथें, सभे समनमा छेलै जे टा | |
− | + | टरकोॅ के हुड्डोॅ पर बैठलोॅ दोन्हू तरफें चारो बेटा | |
+ | चार पुतोॅ हू बच्चा गोदीं दोन्हू पर आगू में बैठली | ||
+ | कानी हंकरी दूध पिलावै बोकारो सें भोर्है चलली | ||
+ | सौसें रस्ता किच-किच करने रजडांडी लग आवी गेलै | ||
+ | चक्का धनखेती आरी लग भदबारी कीचड़ोॅ में धँसलै | ||
+ | जोर लगैलकै फिन नैं बढ़लै कोदरा-खन्ती कत्तों चलैलकै | ||
+ | टकवा दै-दै नजदीखै केॅ बरियोॅ-बरियोॅ लोग बोलैलकै | ||
− | + | ठेलै-ठालै में लोगोॅ केॅ | |
− | + | खूब करै लेॅ पड़लै कुस्ती | |
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− | + | भोरकोॅ चललोॅ सांझैं अैलै, बारोॅ घन्टा भुखे पियासलोॅ | |
− | + | आपनोॅ घरबा चिन्हैं नैं पारै सगरो झलकै ढहले-ढहलोॅ | |
− | + | गोतिया तरफें नजर हियाबै दया करी केॅ कोय तेॅ राखतोॅ | |
− | + | दशे दिनोॅ के खातिर कोइयो गोतिया कही शरणमां देतोॅ | |
+ | भैय्यारी नाता में मगरूं भीतरे-भीतर तरक लगावै | ||
+ | गूहाली में केना केॅ राखवै भगवान्हैं है लाज बचावै | ||
+ | मंगरू के पेटोॅ के बतिया गरभू के माथा में धंसलै | ||
+ | काड़ी-पाड़ी गोरू-वछिया देखि-देखि के मंगरू हंसलै | ||
+ | खेतोॅ में खुट्टा गाड़ी केॅ सभे जानवर जोरी देलकै | ||
+ | गूहाली अजवारी करी केॅ गरभू केॅ ओकर्है में बसैलकै | ||
− | + | चूड़ा-औकरी खिलाय-खिलाय केॅ | |
− | + | भूख भगैथैं भेलै मस्ती | |
− | + | नौकरिया के पैसवा देखी गरभूं तरे तोॅर बिचारै | |
− | + | चर-चर कोठरी एक बरन्डा केना के बनतै हिम्मत हारै | |
− | + | हिम्मत सें फिन घ्ज्ञरबा बनलै पूजा-पाठ करैन्हैं गेलै | |
− | + | भानस एक बनैला पर चुल्होॅ-चक्की सड़ियैन्हैं गेलै | |
+ | चुकिया कीनी केॅ दूध दुहलकै रोटी साथें सभ्भै खेलकै | ||
+ | देव पित्तर के खातिर गरभूं तुलसी पिन्डोॅ एक बनैलकै | ||
+ | भादोॅ-बीतलै आसिन-ढुकलै दुरगा माय के भेलै तैय्यारी | ||
+ | सैंतीस सालोॅ के नागा पर पठभा दै के अैलै पारी | ||
+ | टकबा खोसनें डाड़ाँ में चललोॅ पठभा कीनै लेॅ गरभू लाल | ||
+ | बीच्है ठो हटियॉ भेटी गेल्हैन यार लङगोटिया हीरा लाल | ||
+ | हीरा लालें कुशल पुछलकै गरभू बोलथै भेलोॅ बेहाल | ||
+ | चर-चर बेटा सत-सत पोती चार पुतहुवोॅ के बड़का जाल | ||
− | + | बोलथैं-बोलथैं गरभू के जेॅ | |
− | + | आँख लौरै लै अेत्तेॅ फुरती | |
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− | + | गरभू बोललै बड़का केॅ तिन मंझला दू बेटी के बाप | |
− | + | संझला-छोटका एख्हक लैकेॅ पड़लोॅ रहै छै आपने-आप | |
− | + | बेटबा चारो बेरोजगारी काम कभी नैं कुछु करै छै | |
− | + | रात-दिन बहुओॅ के पीछूं घुरी-घुरी के पड़ी रहै छै | |
+ | सतरों पेट चलैय्यो एक्के केना के काटवै शेष जीनगी? | ||
+ | माथें काम नैं करै छै भैय्यां डाल नैं सूझै छै छुच्छोॅ फुनगी | ||
+ | हीरा बोललै तोहें अच्छा, बोकारो सें कुछु तेॅ लानल्हेॅ | ||
+ | हमरोॅ खिस्सा अलग-थलग छै केनां केॅ बचलां तोहें की जानल्हे? | ||
+ | अन्हरी मौगी लङड़ी बेटी रोज कमाना रोज छै खाना | ||
+ | एक्को दिन नागा करला सें नैं भेटै छै एक्कोॅ दाना | ||
+ | कत्तेॅ दिन तेॅ भुखे रहै छी बिन घरबा के फटै छै छाती | ||
+ | मरी-खपी केॅ जियै छी भैय्या, भाड़ा दैं में लगै छेॅ दाँती | ||
− | + | हमरा लेलोॅ दुनियाँ अन्धरोॅ | |
− | + | की मंहगी आरो की छै सस्ती? | |
− | + | ||
− | + | गरभूं देखलक हीरा के रूख झलकै कुछू टोनै वाला | |
+ | तुरत पटैलक एक पठभा केॅ डोर पकड़नें भागलोॅ लाला | ||
+ | जान छोड़ैलक हीरा सें फिन पठभा कीननेॅ घोॅर पहुंचलोॅ | ||
+ | खुट्टां जोरी नजर घुमैने मंगरू लग फिन पहुंची गेलोॅ | ||
+ | पुछेॅ लागलोॅ गाँव घरोॅ के, एकाँएकीं सभ्भै के हाल | ||
+ | मंगरू से बतियावेॅ लागलोॅ ध्यिान धरी केॅ गरभूलाल | ||
+ | मंगरू बोलतै तोरा गेला पर भेलै दंगा आरो फसाद | ||
+ | टेम्हन, रोजन, जंगली मरलै मुदरत, शेखावतोॅ फसाद | ||
+ | जे बचलै वें गाँव छोड़लकै होलै बस्ती मुस्लिम-हीन | ||
+ | पैसा वालां खूब लुटलकै साग-भाव में लेलकै कीन | ||
+ | घोघरा बाला चनरें लेलकै, टिकरी बाला अरविन्नें | ||
+ | चौर कीनलकै जमनां बाबूं, भीठ कीनलकै गोविन्नें | ||
+ | जेकरा जन्नेॅ जहाँ सुतरलै खस्सी-पाठा-बरदा-गाय | ||
+ | सभ्भैं गोटी लाल करलकै, की वरम्हन की रजपूत भाय? | ||
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+ | एन्हों कैइहौ कभी नैं भेलै | ||
+ | चारो तरफें अलमस्ती | ||
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+ | दू घोॅर लालां छुच्छे हियावै टंट-घंट जोगाड़ कहाँ? | ||
+ | कोयरी कुरमीं झंट-झट कीनै हरिजन केॅ औकात कहाँ? | ||
+ | कुदरत घर लग बसल्हौ पर भी हलवैय्याँ नैं कीनेॅ पारलै | ||
+ | टेम्हन वाला घोॅर बीकलै लाला जी ओकरहौं में हारलै | ||
+ | भागी केॅ कोय गोड्डा उड़लै कोय परबत्ती शहरोॅ लग | ||
+ | खढ़िहारा में जाय धमकलै जग्घोॅ लेलकै नहरोॅ लग | ||
+ | कीन-बेच तेॅ चलथैं रहलै-तेसर साल दसहरा तालुक | ||
+ | कत्तेॅ कीनवैय्या दौड़ै, परबत्ती सें खड़िहारा तालुक | ||
+ | कत्तेॅ अच्छा हौ सभ छेलै, कत्तेॅ प्यारोॅ बास रहै | ||
+ | कुछ पङटा के चलतें लिखलोॅ है गाँमोॅ के नाश रहै | ||
+ | जमना चौधरी गाँव के पढुवा होलै मैनीजर कोयला खाद | ||
+ | सभ नङटा केॅ हुनी बोलैलकै सभ दौड़लै लैकेॅ उन्माद | ||
+ | सब के काम लगैलकै चौधरीं-होलै बस्ती लुक्कड़हीन | ||
+ | सभ्भैं चैन के साँस खीचलकै, बाजॅे लागलै सगरो बीन | ||
+ | एक गेला पर दोसरोॅ गेलै सौंरहै परिवारोॅ के साथ | ||
+ | ताला सगरोॅ लटके लागलै होलै बस्ती फेनू अनाथ | ||
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+ | लोग परैला सें गामोॅ केॅ | ||
+ | होलै फिन हालत पस्ती | ||
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+ | तीन सोॅ घर में दू सोॅ छेलै रहवैय्या जे वरम्हन के | ||
+ | सोॅ ठो बाभन फिन नैं पुरै नैतवा गछला जिमावन के | ||
+ | पांच मोॅन चौॅरोॅ में पूरै भोज-भात जोनी जग्गोॅ के | ||
+ | लेकिन छवे पसेरीॅ भेलै छक्कमछक जग भग्गो के | ||
+ | भग्गो बोललै कहाँ खबैय्या, रहलै आबेॅ गामोॅ में | ||
+ | अधमन्नी आटा के पूड़ी चलै छै दोनों सामोॅ में | ||
+ | जमना चौधरी के मरथैं फिन बस्ती भेलै डावाँडोल | ||
+ | मंगरू बोललै दिन्हैं दुपरिहा दारू-ताड़ी वीकै छै मोल | ||
+ | सूअर-मुर्गा रोज कटै छै बाबा जी के घरबा में | ||
+ | पढुवा-लिखुवा रोज नुकावै नङटा सभ के डरवा सें | ||
+ | दंगा के पैन्हें आरो बादोॅ, हालत जे छेलै गामोॅ केॅ | ||
+ | ओकर्हौ सें बदतर भै गेलै तखनी हालत आमोॅ के | ||
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+ | मंगरू के बतबा ठो वुझथै | ||
+ | गरभू केॅ लागलै सुस्ती | ||
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+ | राज कोन आवी गेलै कि जात-पात झलकेॅ लागलै | ||
+ | सगरो मार-मरौव्वल होय छै बेरादरी चटकेॅ लागलै | ||
+ | एक जात सें दोसरोॅ जाती बनी गेलै बड़का खाई | ||
+ | पैन्हें जेकरा दोस्त बताबै, दुश्मन बनलै हौ भाई | ||
+ | छोटका केॅ बड़का के नैं छै कटियो टा सुध लाज-धरम | ||
+ | नीति के बतबा सब भुललै सभ्भैं छोड़लकै आपनोॅ करम | ||
+ | तखनी छेल्हौं आदर जे टा एखनी ओकरा दहू भूलाय | ||
+ | पंडी जी केॅ टीक कहाँ छै? पुरहित जी लग कोय नैं जाय | ||
+ | पता नहीं के केकरा लुटतैं केकरोॅ इज्जत कोॅन ठियाँ? | ||
+ | के केकरा सें गारी सुनतै जान नुकैतै कोॅनी कियाँ? | ||
+ | थाना दूर, पुलिस के नखड़ा के केकरा पे केश करेॅ? | ||
+ | केकरोॅ जान भेलोॅ छै भारी गाँव सुधारक भेष धरेॅ | ||
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+ | केखरौ कोय नैं गरज छै भैय्या | ||
+ | कौने गछतै परबस्ती? | ||
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+ | की करभौ! मांटी पकड़ी के? बचवा के नैं ठिकानोॅ छौं | ||
+ | घोॅर बन्हैलेॅ ठिक्के करल्हेॅ मलकाठोॅ में जानोॅ छौं | ||
+ | पठभा दै केॅ दुरगा माय केॅ सोच्हौं केना केॅ जीभौॅ तों? | ||
+ | छोड़वा सब के आगू सोच्हौ कैसें केना केॅ रहभौॅ तों? | ||
+ | हूरो जादव जब तक बचलै कक्का दादा सब चललै | ||
+ | मतर आय कमली के मन में बड़का के आदर घटलै | ||
+ | बाबा जी के नेम अजूबे, टोले-टोली झगड़ा छै | ||
+ | पचखुट्टी-सतभैय्या दुश्मन तिनखुट्टी सें रगड़ा छै | ||
+ | चौधरी टोलोॅ अलग थलग छै, ओझा-मिसरें नैं पटरी | ||
+ | दू घोॅर पाठक कौनें पूछेॅ सभ के अलग पकेॅ खिचड़ी | ||
+ | आबेॅ कत्तॅे कहभौं भैय्या गुवर-टोली के फैसन जव्वड़ | ||
+ | कदर टोल के बात अलग छै, कहर टोली छै लाल बुझक्कड़ | ||
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+ | सभ्भै जातीं आपन्है-आपनी | ||
+ | देथौं टोला के गस्ती | ||
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+ | गंजेड़ी के जात अलग छै चाहें बरम्हन चाहे गोप | ||
+ | या कहार फिन कोयरी कुर्मी सभ्भे बनथौं पोपे-पोप | ||
+ | कहाँ से कन्नेॅ माल ससरतै गंजेड़ी केॅ येहे छै काम | ||
+ | चिलम चढ़ावै खातिर कुछ तेॅ फरफन्दी के चहियोॅ दाम? | ||
+ | दू पैसा जेॅ लै केॅ अैल्हेॅ पिन्ड छोड़ना मुश्किल छौं | ||
+ | कखनी पकड़ैभौ लङटा से जान छोड़ाना मुश्किल छौं | ||
+ | टैक्स लगैथौं लम्पटवां सब, बिन देने छौं त्राण कहाँ? | ||
+ | चाहे फगुआ या कि दशहरा, बिन देने कल्याण कहाँ? | ||
+ | चंदा के पैसवा सें कीनैतै सब टा मस्ती के आलम | ||
+ | भांग-धतूरा-गांजा-दारू ताड़ी-गुटका आरो चिलम | ||
+ | गाँव में गर जों रहना छौं ते नङटा केॅ खुश करहै ले पड़थौं | ||
+ | बोकरो के कुछ कमैय्या-यै पंथोॅ में भरै लेॅ पड़थौं | ||
+ | |||
+ | मंगरू के बतवा, नें करलकै | ||
+ | गरभू केरोॅ अधोॅ गति | ||
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+ | बतवा आभी चलथैं छेलै अैलै लागले बड़का जेरोॅ | ||
+ | पान सोॅ एक चढ़ौवा खातिर पुर्जी देलकै चन्दा केरोॅ | ||
+ | आना-कानी करहैं नैं पारै नामी-नामी लम्पट छेलै | ||
+ | बोलै के जग्घेॅ नैं बचलै गरभू केॅ हौ दिहै लेॅ पड़लै | ||
+ | दू टोली के बीच्हैं छेलै काली माय के साविक धाम | ||
+ | ओकर्है लग सटले बनवैलकै वस्ती लोगें दुरगा थान | ||
+ | दशगरदा बग्घोॅ रहला सें इफरादी जग्घोॅ मिललै | ||
+ | दुरगा माय के मन्दिर उन ठाँ चमकी केॅ खुव्वेॅ खिललै | ||
+ | पैल्होॅ पूजा शैलपुत्री केॅ, ब्रह्मचारिणी दोसरोॅ दिन | ||
+ | चन्द्रघन्टा औ कुष्मांडा के, तेसरोॅ आरो चौठो दिन | ||
+ | माय एकन्दा आबी गेली, पाँचभोॅ दिन पूजा करवाय | ||
+ | कात्यायणी के पूजा भेलै, छोॅ पूजा फिन गेलै ओराय | ||
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+ | सगरोॅ सजलै दोकनदारी | ||
+ | फैललै फिन आलम मस्ती | ||
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+ | कालरात्रि के पूजा खातिर, गामोॅ के लोगवा जुटलै | ||
+ | शंख नगाड़ा घड़ी-घंट, तुतरू ढोलक डमरू बजलै | ||
+ | मैय्या के आवाहान होलै, सतमी के पूजा चललै | ||
+ | चन्डी पाठ के पोथी लै ले-पंडित-फूल थरिया जुटवै | ||
+ | महागौरी केॅ पूजै खातिर, अठमी रोजोॅ के भेलै विहान | ||
+ | पूजा-पाठ के मन्तर सें फिन गन-गन भेलै दुरगा थान | ||
+ | सभै छवारिकें मिली-जुली केॅ नाटक के जोगाड़ बनैलकै | ||
+ | ओकरोॅ खातिर अलघहैं चन्छा, गरभू के पूरजी धरवैलकै | ||
+ | दिनभर मेला जमथैं गेलै, प्रतिमा के दरशन के खातिर | ||
+ | कीन-बेच सब होयै रहलै, दुरगा माय चढ़ौवा खातिर | ||
+ | दश बस्ती के लोगवा अैलै, मन्तर के उच्चारण सुनथैं | ||
+ | भीड़-भाड़ साम्हैं तक चललै, माता के दरशन के पन्थें | ||
+ | मैॅ को पर कीरतन के टोलीं, दूर दूर तक शोर मचावै | ||
+ | कखनू-कखनू अच्छर कुटवाँ, प्रवचन दै-दै गाँव बजावै | ||
+ | गाजा-भांग के मस्ती लै लै, उछल-कूद सब चलथैं रहलै | ||
+ | लोक गीत, संस्कार, कथा गीत, भक्ति गीत सब गैलेॅ गैले | ||
+ | नाटक-ऊटक सब कुछ भेलै, ऋतु गीत के पाठ करलकै | ||
+ | लोरकाही गावी केॅ गोपें आपनोॅ-आपनोॅ हुनर देखैलकै | ||
+ | जोॅर जनानी फेनू जुटली, मैय्या के गीतोॅ के गैलकी | ||
+ | निशां बली तक गावी-गावी आरती दै दै सुखोॅ पैलकी | ||
+ | सिद्धि दातृ नौमी दिन अैलौ, गरभूं कन फिन पाठा पड़लै | ||
+ | दुरगा भान गछलक पाठा वलि माय के वेदी पड़लै | ||
+ | |||
+ | देखथैं-देखथैं नवदुर्गा के | ||
+ | खेल खतम होलै फुरती | ||
+ | |||
+ | नौमी जैथैं दशमी अैलै गल्लां-गल्लां लोगवा मिललै | ||
+ | नीलकंठ केॅ देखै खातिर डाल-पात पे खोजेॅ लागलै | ||
+ | वेदी के पठवा के शीरा सांझैं फिन नीलामी भेलै | ||
+ | डाक बोली केॅ कत्तें लेलकै नैं वै में हैरानी भेलै | ||
+ | पैल्हकोॅ लोगोॅ केॅ सरधा छलै दुरगा माय केॅ पूजै में | ||
+ | खाली आबेॅ अटम्मरी रहलै देख हिसखी जै जै में | ||
+ | कीर्तन कम हरिवोल छै जादा, लोक देखावन खिस्सा छै | ||
+ | माय के नाम के जमा राशि में, खोजै आपनोॅ हिस्सा छै | ||
+ | पैन्हें गरभू देखने छेलै कारतिक दादा छेलै पुजारी | ||
+ | रोहिन ठाकुरें पकड़ धुपौड़ी जीहा निकालै घूरी-घूरी | ||
+ | सभ्भै बोलै काली माय के भाव पहुंचलै रोहिन पर | ||
+ | थर-थर काँपै जीभ निकालै वर्हम थान के केविन पर | ||
+ | कार्तिक दादा केॅ मरला पर, दशमी चौधरी भेलै पुजारी | ||
+ | काली माय के भाव भंगिमा, अच्छों पैलकै विरसत भारी | ||
+ | बाप्है पूत परापत घोड़ा, नहीं बहुत तेॅ थोड़म-थोड़ा | ||
+ | दशमी भी एक रोज गुजरलै-टूटी गेलै अच्छो के धुपौड़ा | ||
+ | नया-नया विधकरिया देखी, गरभूं ओकरा चिन्हैं नैं पॉरै | ||
+ | मंगरू सें हर बतबा पूछी, ओझरैलोॅ माथा केॅ सम्हारै | ||
+ | बस्ती के पौनियाँ सेनी केॅ मंगरू फेनू चिन्हावेॅ लागलै | ||
+ | लौआ, पंडित, पुरहैत सबके, नाम तुरन्त गिनावेॅ लागलै | ||
+ | नोॅ दिन के नवरात्री बितलै, दसमी के भेलै निस्तार | ||
+ | भेलै भसौॅ न गेली दुरगा जी दुरगा पूजा होलै पार | ||
+ | |||
+ | गरभू देखलक गाँव घरोॅ केॅ | ||
+ | लोगोॅ में अैलै सुस्ती | ||
+ | |||
+ | पूजा बीतला पर गरभूं ने, चारो ओर हियावेॅ लागलै | ||
+ | सैंतीस बरस पहिलकोॅ बाला-एक्को चीज नैं पावेॅ लागलै | ||
+ | कहाँ गेलै हौ मैदनियाँ ठो जेकरा पेॅ फुटवौल खेलावै | ||
+ | कहाँ गेलै हौ बाग बगिच्चा, जै में दोल दलिच्चा भावै | ||
+ | नदिया कांती गाय मिलावै, हौ ठो जग्घोॅ देखै नैं पारै | ||
+ | पोखरी तर रोॅ बरगद गछियाँ, ठुट्ठोॅ होलोॅ धरा निहारै | ||
+ | इस्कूली के पिछुहाड़ी में फूलोॅ के जे छेलै गड़ारी | ||
+ | ओकरा सें हटला पर आगू, जे ठोॅ छेलै मैदनियाँ भारी | ||
+ | जेकरा में बपचन में गरभूं कत्तेॅ रङ के खेल खेललकै | ||
+ | दक्षोॅ आरम्भोॅ के दीक्षा, वही ठियाँ स शुरू करलकै | ||
+ | आमी के गछिया दानी के, जेकरा पर वें ढ़ेपोॅ फेकै | ||
+ | टीकोला केॅ खूव झड़ावै-कुच्चा-घुमनी खुब्बे खाबै | ||
+ | जामुन-बड़हर-बैर-साफड़ी-ताड़ खजूर ठो कहाँ नुकैलै | ||
+ | आता-पोपीता-केला-खटमिठिया उस्तू कहाँ पेॅ गेलै | ||
+ | |||
+ | सभ्भेॅ जग्घोॅ के की भेलै | ||
+ | की भेलै बगियन के गति | ||
+ | |||
+ | मंगरू बोललै सन पचपन में जमीन्दार जबेॅ भागेॅ लागलै | ||
+ | सभ टा चीज भसैन्है गेलै बन्दोवस्ती लागेॅ लागलै | ||
+ | गामोॅ के जे पढुवा छलै, कटियो टा नैं भेलै शरम | ||
+ | कौड़ी भाव में सभ्भैं कीनलकै, जेव करलकै खूवे गरम | ||
+ | कोय खुद्दे कीनबैय्या बनलै, कोय दलाली करम करै | ||
+ | नीपा-पोती गाँव करी केॅ जमीन्दार के बरण करै | ||
+ | मदरारी के छेदीं लेलकै, मैदनियाँ फुटवौलोॅ बाला | ||
+ | गाम्हैं के मुंशी जीं कीनलकै, बाग बगिच्चा आमोॅ वाला | ||
+ | कटी गेलै हौ जामुन-बड़हर, खड़ी गबेलै गोचर-मैदान | ||
+ | चप्पा चुप्पीं सब जग्घा में उपजेॅ लागलै सगरो धान | ||
+ | नैं सोचलकै केना केॅ खेलतै बच्चा-बुतरूं गामोॅ के | ||
+ | नैं सोचलकै कहाँ पे चरतै गैय्या-गोरू गामोॅ केॅ | ||
+ | स्वारथ के पल्लां में पड़लै गामोॅ के पढुवा लिखुवा | ||
+ | भेलै नतीजा सभे खिसकलै गाँव छोड़ी के हर सिखुआ | ||
+ | नैं छै कन्हौं गुल्ली-डंटा, नहीं कबड्डी कन्हौं पैभौ | ||
+ | बीच सड़क पर छौड़ा सभ केॅ किरकिट-बैट पकड़ने देखभौ | ||
+ | बीत्ती-रिङगोॅ उठिये गेलै आबी गेलै बैडमीन्टन | ||
+ | गोल-चुक्की के जग्घोॅ लेलकै टेबुल टेनिस के फैसन | ||
+ | |||
+ | गरभूं सभ्भें देखी सुनी केॅ | ||
+ | भीतरे-भीतर भेलै ‘पस्ती’ | ||
+ | |||
+ | मंगरूं समझैलकै गरभू केॅ कथी लेॅ होय छौ तों हैरान | ||
+ | तोरोॅ दरद बुझै छी हम्में, गमी केॅ तोरोॅ सौसें मुठान | ||
+ | बोललै, है सभ होथैं छै-से जाबेॅ दहू की करभौ? | ||
+ | पूजा के पैन्हें जे कलिहौं-वै पर ध्यान तों नैं धरभौ | ||
+ | तखनी हम्में कहने रहियौं गाँव के हालत तोहरा सें | ||
+ | आबेॅ है तेॅ होथै रहतै, लम्पटबा के कोहरा सें | ||
+ | निम्मर रहला से आबेॅ गामोॅ में बहुत बखेड़ा छै | ||
+ | डेग-डेग अपमानित होय केॅ रहना गरक में बेड़ा छै | ||
+ | कैन्हें कि तोहरा सें हमरोॅ बड़का जाल बनी जैतै | ||
+ | बस्ती के लम्पटवा सेनी की मजाल? खोखेॅ पारतै | ||
+ | हुमची देवै दोन्हूं मिली केॅ जों लम्पटवा कुछवोॅ बकतै | ||
+ | यही गाँव में जीना-मरना, बरियोॅ बनीं केॅ रहै लेॅ पड़तै। | ||
+ | |||
+ | गरभू के मथवा में धँसलै | ||
+ | मंगरू के बतिया सुमति | ||
+ | सैंतीस साल नौकरिया पूरने | ||
+ | गरभू घुरलोॅ आपनोॅ बस्ती। | ||
</poem> | </poem> |
23:04, 16 मई 2016 के समय का अवतरण
सैंतीस साल नौक्रिया पुरने
गरभू घूरलोॅ आपनोॅ बस्ती
उपरोॅ सें गम्भीर देखावै
भीतरे-भीतर हालत खस्ती
एक टरक पर गोरू काड़ी, लाद, टीन आरो बाछी पड़िया
दोसरा पर बरतन बिछौनोॅ जाँतोॅ, उखरी, खटिया मचिया
दोनों जिव तिन पोती साथें, सभे समनमा छेलै जे टा
टरकोॅ के हुड्डोॅ पर बैठलोॅ दोन्हू तरफें चारो बेटा
चार पुतोॅ हू बच्चा गोदीं दोन्हू पर आगू में बैठली
कानी हंकरी दूध पिलावै बोकारो सें भोर्है चलली
सौसें रस्ता किच-किच करने रजडांडी लग आवी गेलै
चक्का धनखेती आरी लग भदबारी कीचड़ोॅ में धँसलै
जोर लगैलकै फिन नैं बढ़लै कोदरा-खन्ती कत्तों चलैलकै
टकवा दै-दै नजदीखै केॅ बरियोॅ-बरियोॅ लोग बोलैलकै
ठेलै-ठालै में लोगोॅ केॅ
खूब करै लेॅ पड़लै कुस्ती
भोरकोॅ चललोॅ सांझैं अैलै, बारोॅ घन्टा भुखे पियासलोॅ
आपनोॅ घरबा चिन्हैं नैं पारै सगरो झलकै ढहले-ढहलोॅ
गोतिया तरफें नजर हियाबै दया करी केॅ कोय तेॅ राखतोॅ
दशे दिनोॅ के खातिर कोइयो गोतिया कही शरणमां देतोॅ
भैय्यारी नाता में मगरूं भीतरे-भीतर तरक लगावै
गूहाली में केना केॅ राखवै भगवान्हैं है लाज बचावै
मंगरू के पेटोॅ के बतिया गरभू के माथा में धंसलै
काड़ी-पाड़ी गोरू-वछिया देखि-देखि के मंगरू हंसलै
खेतोॅ में खुट्टा गाड़ी केॅ सभे जानवर जोरी देलकै
गूहाली अजवारी करी केॅ गरभू केॅ ओकर्है में बसैलकै
चूड़ा-औकरी खिलाय-खिलाय केॅ
भूख भगैथैं भेलै मस्ती
नौकरिया के पैसवा देखी गरभूं तरे तोॅर बिचारै
चर-चर कोठरी एक बरन्डा केना के बनतै हिम्मत हारै
हिम्मत सें फिन घ्ज्ञरबा बनलै पूजा-पाठ करैन्हैं गेलै
भानस एक बनैला पर चुल्होॅ-चक्की सड़ियैन्हैं गेलै
चुकिया कीनी केॅ दूध दुहलकै रोटी साथें सभ्भै खेलकै
देव पित्तर के खातिर गरभूं तुलसी पिन्डोॅ एक बनैलकै
भादोॅ-बीतलै आसिन-ढुकलै दुरगा माय के भेलै तैय्यारी
सैंतीस सालोॅ के नागा पर पठभा दै के अैलै पारी
टकबा खोसनें डाड़ाँ में चललोॅ पठभा कीनै लेॅ गरभू लाल
बीच्है ठो हटियॉ भेटी गेल्हैन यार लङगोटिया हीरा लाल
हीरा लालें कुशल पुछलकै गरभू बोलथै भेलोॅ बेहाल
चर-चर बेटा सत-सत पोती चार पुतहुवोॅ के बड़का जाल
बोलथैं-बोलथैं गरभू के जेॅ
आँख लौरै लै अेत्तेॅ फुरती
गरभू बोललै बड़का केॅ तिन मंझला दू बेटी के बाप
संझला-छोटका एख्हक लैकेॅ पड़लोॅ रहै छै आपने-आप
बेटबा चारो बेरोजगारी काम कभी नैं कुछु करै छै
रात-दिन बहुओॅ के पीछूं घुरी-घुरी के पड़ी रहै छै
सतरों पेट चलैय्यो एक्के केना के काटवै शेष जीनगी?
माथें काम नैं करै छै भैय्यां डाल नैं सूझै छै छुच्छोॅ फुनगी
हीरा बोललै तोहें अच्छा, बोकारो सें कुछु तेॅ लानल्हेॅ
हमरोॅ खिस्सा अलग-थलग छै केनां केॅ बचलां तोहें की जानल्हे?
अन्हरी मौगी लङड़ी बेटी रोज कमाना रोज छै खाना
एक्को दिन नागा करला सें नैं भेटै छै एक्कोॅ दाना
कत्तेॅ दिन तेॅ भुखे रहै छी बिन घरबा के फटै छै छाती
मरी-खपी केॅ जियै छी भैय्या, भाड़ा दैं में लगै छेॅ दाँती
हमरा लेलोॅ दुनियाँ अन्धरोॅ
की मंहगी आरो की छै सस्ती?
गरभूं देखलक हीरा के रूख झलकै कुछू टोनै वाला
तुरत पटैलक एक पठभा केॅ डोर पकड़नें भागलोॅ लाला
जान छोड़ैलक हीरा सें फिन पठभा कीननेॅ घोॅर पहुंचलोॅ
खुट्टां जोरी नजर घुमैने मंगरू लग फिन पहुंची गेलोॅ
पुछेॅ लागलोॅ गाँव घरोॅ के, एकाँएकीं सभ्भै के हाल
मंगरू से बतियावेॅ लागलोॅ ध्यिान धरी केॅ गरभूलाल
मंगरू बोलतै तोरा गेला पर भेलै दंगा आरो फसाद
टेम्हन, रोजन, जंगली मरलै मुदरत, शेखावतोॅ फसाद
जे बचलै वें गाँव छोड़लकै होलै बस्ती मुस्लिम-हीन
पैसा वालां खूब लुटलकै साग-भाव में लेलकै कीन
घोघरा बाला चनरें लेलकै, टिकरी बाला अरविन्नें
चौर कीनलकै जमनां बाबूं, भीठ कीनलकै गोविन्नें
जेकरा जन्नेॅ जहाँ सुतरलै खस्सी-पाठा-बरदा-गाय
सभ्भैं गोटी लाल करलकै, की वरम्हन की रजपूत भाय?
एन्हों कैइहौ कभी नैं भेलै
चारो तरफें अलमस्ती
दू घोॅर लालां छुच्छे हियावै टंट-घंट जोगाड़ कहाँ?
कोयरी कुरमीं झंट-झट कीनै हरिजन केॅ औकात कहाँ?
कुदरत घर लग बसल्हौ पर भी हलवैय्याँ नैं कीनेॅ पारलै
टेम्हन वाला घोॅर बीकलै लाला जी ओकरहौं में हारलै
भागी केॅ कोय गोड्डा उड़लै कोय परबत्ती शहरोॅ लग
खढ़िहारा में जाय धमकलै जग्घोॅ लेलकै नहरोॅ लग
कीन-बेच तेॅ चलथैं रहलै-तेसर साल दसहरा तालुक
कत्तेॅ कीनवैय्या दौड़ै, परबत्ती सें खड़िहारा तालुक
कत्तेॅ अच्छा हौ सभ छेलै, कत्तेॅ प्यारोॅ बास रहै
कुछ पङटा के चलतें लिखलोॅ है गाँमोॅ के नाश रहै
जमना चौधरी गाँव के पढुवा होलै मैनीजर कोयला खाद
सभ नङटा केॅ हुनी बोलैलकै सभ दौड़लै लैकेॅ उन्माद
सब के काम लगैलकै चौधरीं-होलै बस्ती लुक्कड़हीन
सभ्भैं चैन के साँस खीचलकै, बाजॅे लागलै सगरो बीन
एक गेला पर दोसरोॅ गेलै सौंरहै परिवारोॅ के साथ
ताला सगरोॅ लटके लागलै होलै बस्ती फेनू अनाथ
लोग परैला सें गामोॅ केॅ
होलै फिन हालत पस्ती
तीन सोॅ घर में दू सोॅ छेलै रहवैय्या जे वरम्हन के
सोॅ ठो बाभन फिन नैं पुरै नैतवा गछला जिमावन के
पांच मोॅन चौॅरोॅ में पूरै भोज-भात जोनी जग्गोॅ के
लेकिन छवे पसेरीॅ भेलै छक्कमछक जग भग्गो के
भग्गो बोललै कहाँ खबैय्या, रहलै आबेॅ गामोॅ में
अधमन्नी आटा के पूड़ी चलै छै दोनों सामोॅ में
जमना चौधरी के मरथैं फिन बस्ती भेलै डावाँडोल
मंगरू बोललै दिन्हैं दुपरिहा दारू-ताड़ी वीकै छै मोल
सूअर-मुर्गा रोज कटै छै बाबा जी के घरबा में
पढुवा-लिखुवा रोज नुकावै नङटा सभ के डरवा सें
दंगा के पैन्हें आरो बादोॅ, हालत जे छेलै गामोॅ केॅ
ओकर्हौ सें बदतर भै गेलै तखनी हालत आमोॅ के
मंगरू के बतबा ठो वुझथै
गरभू केॅ लागलै सुस्ती
राज कोन आवी गेलै कि जात-पात झलकेॅ लागलै
सगरो मार-मरौव्वल होय छै बेरादरी चटकेॅ लागलै
एक जात सें दोसरोॅ जाती बनी गेलै बड़का खाई
पैन्हें जेकरा दोस्त बताबै, दुश्मन बनलै हौ भाई
छोटका केॅ बड़का के नैं छै कटियो टा सुध लाज-धरम
नीति के बतबा सब भुललै सभ्भैं छोड़लकै आपनोॅ करम
तखनी छेल्हौं आदर जे टा एखनी ओकरा दहू भूलाय
पंडी जी केॅ टीक कहाँ छै? पुरहित जी लग कोय नैं जाय
पता नहीं के केकरा लुटतैं केकरोॅ इज्जत कोॅन ठियाँ?
के केकरा सें गारी सुनतै जान नुकैतै कोॅनी कियाँ?
थाना दूर, पुलिस के नखड़ा के केकरा पे केश करेॅ?
केकरोॅ जान भेलोॅ छै भारी गाँव सुधारक भेष धरेॅ
केखरौ कोय नैं गरज छै भैय्या
कौने गछतै परबस्ती?
की करभौ! मांटी पकड़ी के? बचवा के नैं ठिकानोॅ छौं
घोॅर बन्हैलेॅ ठिक्के करल्हेॅ मलकाठोॅ में जानोॅ छौं
पठभा दै केॅ दुरगा माय केॅ सोच्हौं केना केॅ जीभौॅ तों?
छोड़वा सब के आगू सोच्हौ कैसें केना केॅ रहभौॅ तों?
हूरो जादव जब तक बचलै कक्का दादा सब चललै
मतर आय कमली के मन में बड़का के आदर घटलै
बाबा जी के नेम अजूबे, टोले-टोली झगड़ा छै
पचखुट्टी-सतभैय्या दुश्मन तिनखुट्टी सें रगड़ा छै
चौधरी टोलोॅ अलग थलग छै, ओझा-मिसरें नैं पटरी
दू घोॅर पाठक कौनें पूछेॅ सभ के अलग पकेॅ खिचड़ी
आबेॅ कत्तॅे कहभौं भैय्या गुवर-टोली के फैसन जव्वड़
कदर टोल के बात अलग छै, कहर टोली छै लाल बुझक्कड़
सभ्भै जातीं आपन्है-आपनी
देथौं टोला के गस्ती
गंजेड़ी के जात अलग छै चाहें बरम्हन चाहे गोप
या कहार फिन कोयरी कुर्मी सभ्भे बनथौं पोपे-पोप
कहाँ से कन्नेॅ माल ससरतै गंजेड़ी केॅ येहे छै काम
चिलम चढ़ावै खातिर कुछ तेॅ फरफन्दी के चहियोॅ दाम?
दू पैसा जेॅ लै केॅ अैल्हेॅ पिन्ड छोड़ना मुश्किल छौं
कखनी पकड़ैभौ लङटा से जान छोड़ाना मुश्किल छौं
टैक्स लगैथौं लम्पटवां सब, बिन देने छौं त्राण कहाँ?
चाहे फगुआ या कि दशहरा, बिन देने कल्याण कहाँ?
चंदा के पैसवा सें कीनैतै सब टा मस्ती के आलम
भांग-धतूरा-गांजा-दारू ताड़ी-गुटका आरो चिलम
गाँव में गर जों रहना छौं ते नङटा केॅ खुश करहै ले पड़थौं
बोकरो के कुछ कमैय्या-यै पंथोॅ में भरै लेॅ पड़थौं
मंगरू के बतवा, नें करलकै
गरभू केरोॅ अधोॅ गति
बतवा आभी चलथैं छेलै अैलै लागले बड़का जेरोॅ
पान सोॅ एक चढ़ौवा खातिर पुर्जी देलकै चन्दा केरोॅ
आना-कानी करहैं नैं पारै नामी-नामी लम्पट छेलै
बोलै के जग्घेॅ नैं बचलै गरभू केॅ हौ दिहै लेॅ पड़लै
दू टोली के बीच्हैं छेलै काली माय के साविक धाम
ओकर्है लग सटले बनवैलकै वस्ती लोगें दुरगा थान
दशगरदा बग्घोॅ रहला सें इफरादी जग्घोॅ मिललै
दुरगा माय के मन्दिर उन ठाँ चमकी केॅ खुव्वेॅ खिललै
पैल्होॅ पूजा शैलपुत्री केॅ, ब्रह्मचारिणी दोसरोॅ दिन
चन्द्रघन्टा औ कुष्मांडा के, तेसरोॅ आरो चौठो दिन
माय एकन्दा आबी गेली, पाँचभोॅ दिन पूजा करवाय
कात्यायणी के पूजा भेलै, छोॅ पूजा फिन गेलै ओराय
सगरोॅ सजलै दोकनदारी
फैललै फिन आलम मस्ती
कालरात्रि के पूजा खातिर, गामोॅ के लोगवा जुटलै
शंख नगाड़ा घड़ी-घंट, तुतरू ढोलक डमरू बजलै
मैय्या के आवाहान होलै, सतमी के पूजा चललै
चन्डी पाठ के पोथी लै ले-पंडित-फूल थरिया जुटवै
महागौरी केॅ पूजै खातिर, अठमी रोजोॅ के भेलै विहान
पूजा-पाठ के मन्तर सें फिन गन-गन भेलै दुरगा थान
सभै छवारिकें मिली-जुली केॅ नाटक के जोगाड़ बनैलकै
ओकरोॅ खातिर अलघहैं चन्छा, गरभू के पूरजी धरवैलकै
दिनभर मेला जमथैं गेलै, प्रतिमा के दरशन के खातिर
कीन-बेच सब होयै रहलै, दुरगा माय चढ़ौवा खातिर
दश बस्ती के लोगवा अैलै, मन्तर के उच्चारण सुनथैं
भीड़-भाड़ साम्हैं तक चललै, माता के दरशन के पन्थें
मैॅ को पर कीरतन के टोलीं, दूर दूर तक शोर मचावै
कखनू-कखनू अच्छर कुटवाँ, प्रवचन दै-दै गाँव बजावै
गाजा-भांग के मस्ती लै लै, उछल-कूद सब चलथैं रहलै
लोक गीत, संस्कार, कथा गीत, भक्ति गीत सब गैलेॅ गैले
नाटक-ऊटक सब कुछ भेलै, ऋतु गीत के पाठ करलकै
लोरकाही गावी केॅ गोपें आपनोॅ-आपनोॅ हुनर देखैलकै
जोॅर जनानी फेनू जुटली, मैय्या के गीतोॅ के गैलकी
निशां बली तक गावी-गावी आरती दै दै सुखोॅ पैलकी
सिद्धि दातृ नौमी दिन अैलौ, गरभूं कन फिन पाठा पड़लै
दुरगा भान गछलक पाठा वलि माय के वेदी पड़लै
देखथैं-देखथैं नवदुर्गा के
खेल खतम होलै फुरती
नौमी जैथैं दशमी अैलै गल्लां-गल्लां लोगवा मिललै
नीलकंठ केॅ देखै खातिर डाल-पात पे खोजेॅ लागलै
वेदी के पठवा के शीरा सांझैं फिन नीलामी भेलै
डाक बोली केॅ कत्तें लेलकै नैं वै में हैरानी भेलै
पैल्हकोॅ लोगोॅ केॅ सरधा छलै दुरगा माय केॅ पूजै में
खाली आबेॅ अटम्मरी रहलै देख हिसखी जै जै में
कीर्तन कम हरिवोल छै जादा, लोक देखावन खिस्सा छै
माय के नाम के जमा राशि में, खोजै आपनोॅ हिस्सा छै
पैन्हें गरभू देखने छेलै कारतिक दादा छेलै पुजारी
रोहिन ठाकुरें पकड़ धुपौड़ी जीहा निकालै घूरी-घूरी
सभ्भै बोलै काली माय के भाव पहुंचलै रोहिन पर
थर-थर काँपै जीभ निकालै वर्हम थान के केविन पर
कार्तिक दादा केॅ मरला पर, दशमी चौधरी भेलै पुजारी
काली माय के भाव भंगिमा, अच्छों पैलकै विरसत भारी
बाप्है पूत परापत घोड़ा, नहीं बहुत तेॅ थोड़म-थोड़ा
दशमी भी एक रोज गुजरलै-टूटी गेलै अच्छो के धुपौड़ा
नया-नया विधकरिया देखी, गरभूं ओकरा चिन्हैं नैं पॉरै
मंगरू सें हर बतबा पूछी, ओझरैलोॅ माथा केॅ सम्हारै
बस्ती के पौनियाँ सेनी केॅ मंगरू फेनू चिन्हावेॅ लागलै
लौआ, पंडित, पुरहैत सबके, नाम तुरन्त गिनावेॅ लागलै
नोॅ दिन के नवरात्री बितलै, दसमी के भेलै निस्तार
भेलै भसौॅ न गेली दुरगा जी दुरगा पूजा होलै पार
गरभू देखलक गाँव घरोॅ केॅ
लोगोॅ में अैलै सुस्ती
पूजा बीतला पर गरभूं ने, चारो ओर हियावेॅ लागलै
सैंतीस बरस पहिलकोॅ बाला-एक्को चीज नैं पावेॅ लागलै
कहाँ गेलै हौ मैदनियाँ ठो जेकरा पेॅ फुटवौल खेलावै
कहाँ गेलै हौ बाग बगिच्चा, जै में दोल दलिच्चा भावै
नदिया कांती गाय मिलावै, हौ ठो जग्घोॅ देखै नैं पारै
पोखरी तर रोॅ बरगद गछियाँ, ठुट्ठोॅ होलोॅ धरा निहारै
इस्कूली के पिछुहाड़ी में फूलोॅ के जे छेलै गड़ारी
ओकरा सें हटला पर आगू, जे ठोॅ छेलै मैदनियाँ भारी
जेकरा में बपचन में गरभूं कत्तेॅ रङ के खेल खेललकै
दक्षोॅ आरम्भोॅ के दीक्षा, वही ठियाँ स शुरू करलकै
आमी के गछिया दानी के, जेकरा पर वें ढ़ेपोॅ फेकै
टीकोला केॅ खूव झड़ावै-कुच्चा-घुमनी खुब्बे खाबै
जामुन-बड़हर-बैर-साफड़ी-ताड़ खजूर ठो कहाँ नुकैलै
आता-पोपीता-केला-खटमिठिया उस्तू कहाँ पेॅ गेलै
सभ्भेॅ जग्घोॅ के की भेलै
की भेलै बगियन के गति
मंगरू बोललै सन पचपन में जमीन्दार जबेॅ भागेॅ लागलै
सभ टा चीज भसैन्है गेलै बन्दोवस्ती लागेॅ लागलै
गामोॅ के जे पढुवा छलै, कटियो टा नैं भेलै शरम
कौड़ी भाव में सभ्भैं कीनलकै, जेव करलकै खूवे गरम
कोय खुद्दे कीनबैय्या बनलै, कोय दलाली करम करै
नीपा-पोती गाँव करी केॅ जमीन्दार के बरण करै
मदरारी के छेदीं लेलकै, मैदनियाँ फुटवौलोॅ बाला
गाम्हैं के मुंशी जीं कीनलकै, बाग बगिच्चा आमोॅ वाला
कटी गेलै हौ जामुन-बड़हर, खड़ी गबेलै गोचर-मैदान
चप्पा चुप्पीं सब जग्घा में उपजेॅ लागलै सगरो धान
नैं सोचलकै केना केॅ खेलतै बच्चा-बुतरूं गामोॅ के
नैं सोचलकै कहाँ पे चरतै गैय्या-गोरू गामोॅ केॅ
स्वारथ के पल्लां में पड़लै गामोॅ के पढुवा लिखुवा
भेलै नतीजा सभे खिसकलै गाँव छोड़ी के हर सिखुआ
नैं छै कन्हौं गुल्ली-डंटा, नहीं कबड्डी कन्हौं पैभौ
बीच सड़क पर छौड़ा सभ केॅ किरकिट-बैट पकड़ने देखभौ
बीत्ती-रिङगोॅ उठिये गेलै आबी गेलै बैडमीन्टन
गोल-चुक्की के जग्घोॅ लेलकै टेबुल टेनिस के फैसन
गरभूं सभ्भें देखी सुनी केॅ
भीतरे-भीतर भेलै ‘पस्ती’
मंगरूं समझैलकै गरभू केॅ कथी लेॅ होय छौ तों हैरान
तोरोॅ दरद बुझै छी हम्में, गमी केॅ तोरोॅ सौसें मुठान
बोललै, है सभ होथैं छै-से जाबेॅ दहू की करभौ?
पूजा के पैन्हें जे कलिहौं-वै पर ध्यान तों नैं धरभौ
तखनी हम्में कहने रहियौं गाँव के हालत तोहरा सें
आबेॅ है तेॅ होथै रहतै, लम्पटबा के कोहरा सें
निम्मर रहला से आबेॅ गामोॅ में बहुत बखेड़ा छै
डेग-डेग अपमानित होय केॅ रहना गरक में बेड़ा छै
कैन्हें कि तोहरा सें हमरोॅ बड़का जाल बनी जैतै
बस्ती के लम्पटवा सेनी की मजाल? खोखेॅ पारतै
हुमची देवै दोन्हूं मिली केॅ जों लम्पटवा कुछवोॅ बकतै
यही गाँव में जीना-मरना, बरियोॅ बनीं केॅ रहै लेॅ पड़तै।
गरभू के मथवा में धँसलै
मंगरू के बतिया सुमति
सैंतीस साल नौकरिया पूरने
गरभू घुरलोॅ आपनोॅ बस्ती।