भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्वप्न देखी ओना नखलिस्तानकेर हम / धीरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र |संग्रह=करूणा भरल ई गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:18, 23 मई 2016 के समय का अवतरण

स्वप्न देखी ओना नखलिस्तानकेर हम
जान वा अनजानमे मरूभूमि केर बासी बनल छी।
क्षितिज धरि नहि कतहु छाहरि अछि देखाइत,
अम्बु विन्दुक गप्प तँ अछि करब व्यर्थें !
एम्हर देखी, ओम्हर देखी, हुहुआइत खाली शून्य देखी,
जलक भ्रम यदि भेल कत्तहु, देखल मात्र मरीचका छल।
एहन परिसर विकट हम्मर, आत्मवल टा एक सम्बल।
मित्र ! तइयो ससरि रहले, हमर कफला मन्दगतिसँ।
प्रबल हो यदि भाव धारा, व्यर्थ ताकब तखनि यतिकें।
अनति कालेमे अबै अछि, सिमूम केर बस झोंक खाली।
पसरि रहले हमर मगमे विघ्न-वाधा केर जाली।
दस्यु-वृन्दक कमी नहि अछि, जेम्हर ताकी वैह भेटय।
मुदा ताड़क गाछ सन हम एहि पाँतरमे तनल छी।
जान वा अनजानमे मरूभूमि केर बासी बनल छी।