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"हिन्दीवादी / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'" के अवतरणों में अंतर

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मालवीय  के बी. एच. यू. के, नींव  महोत्सव के हौ रंग,
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पराधीन  भारत केॅ  तोंही, नया ज्ञान के   मंत्रा  सिखैलौ,
राजा-रजबाड़ा के हाकिम, जैमेॅ  कि  अंग्रेजो  संग
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शिक्षा मिलेॅ कि  हेनोॅ जैसेॅ, रोजगार भी मिलेॅµबतैलौ
  
सबने सब  कुछ  बहुत कहलकै, पर गाँधी के बात  अलग,
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छुच्छे  ज्ञान    किताबोॅ केरोॅ, की  मानें  राखै छै; बेरथ,
सुनी-सुनी के   राजा-रैयत, होवेॅ लागलै अलग-थलग
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शिक्षा   वही तेॅ शिक्षा छेकै, सधे घरोॅ के जैसें स्वारथ
  
पर   गाँधी के राष्ट्र प्रेम के सुर  उठलै  तेॅ  ठठले गेलै,
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बापू,  तोहें   परवश युग केॅ स्वालम्बन के पाठ सिखैलौं,
चकित अतिथि   भीतरे-भीतर, माननीयो आतंकित छेलै
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पराधीन भारत मेॅ    बापू, देवदूत    रं   तोहें  ऐलौ
  
भारत   मेॅ   अंग्रेजी  सत्ता, के   खुललै   सब  चाल,
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शिक्षा  केरोॅ   पा}जन्य  ठो, बाजी   उठलैनाद   सघन
आरो एकरोॅ शासन   मेॅ, की  छै  भारत  के  हाल
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अंग्रेजी   शिक्षा  पर चललै, देशी शिक्षा हन, हन, हन
  
की  छै    राजा-धनपतियो  के, हीन-दीन करतूत,
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बापू,   तोंही  तेॅ  बतलैलौ, अपनोॅ  भाषा  केरोॅ  मान,
शासन आगू चुप हेनोॅ ज्यों, बच्चा    देखेॅ    भूत
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हिन्दी  सेॅ ही मुक्ति पैतै, ई  सौंसे  ठो  हिन्दुस्तान
  
की नै  कहलकै गाँधी जी नेॅ, के दोषी   ठो   बचलै ?
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हिन्दी के  बदला   अंग्रेजी, राज  करेॅ  ई  भारत  मेॅ,
केकरो तेॅ अच्छा ही लागलै, केकरो कुछ   नै   पचलै
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कौनें विष केॅ घोरी मिलावै, गंगाजल   के   अक्षत  मेॅ
  
कहते-कहते यहू कहलकै, जों   अंग्रेज   नै  हित  मेॅ,
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अपने भाषा  में  शिक्षा सेॅ, भारत   केॅ   मिलतै स्वराज,
तेॅ छोड़़ौ ई  देश अभी ही, रोकौ   राज   तुरत  मेॅ
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झपटै भारत के  भाषा पर, अंग्रेजी   के   खूनी बाज
  
एक बार  जे   गाँधी   जी के, फुटलै  मन  के  आग,
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रोकै लेॅ   पड़तै   जल्दी सेॅ, अंग्रेजी    के  चाल    चलन,
जलतै रहलै आखिर  तक ऊ, बिना   जलैलै  बाग ।
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की स्वराज मिलतै बिन एकरोॅ ई विदेशी के बिना दलन?
  
बापू  के  स्वर   गूंजेॅ लगलै, प्रान्त-प्रान्त   के    बीच,
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बापू   ई  तोहीं    बतलैलौ, शिक्षाओ  सेॅ    बड़ोॅ, चरित्रा
होलै-होले   सेॅ स्वराज भी, ऐलै   बहुत    नगीच
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सतचरित्रा ही नर के भूषण, यही बंधु  आ  स्वजन-मित्रा ।
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हिन्दी  आय जहां  पर   शोभै, बापू  तोरे   मन के  मोॅन,
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बनलोॅ छै सौंसे भारत  के गुप्त खजाना; मिललोॅ धोॅन ।
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बापू    तोरोॅ  राष्टप्रेम  के छटा  निखरलोॅ  सब्भे ओर,
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भू, जन, भाषा; जहां अन्हरिया, वहीं-वहीं पर तोहें भोर ।
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के  बोलै  छै तोरा नफरत अंग्रेजी  सेॅ   छेलौं  घोर ?
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तोहें  तेॅ  देखौ  छेलौ बस, हिन्दी  सेॅ  ही  होतै  भोर ।
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हिन्दी-हिन्दुस्तानी    में    तेॅ कुछुवो  नै  छै  भेद  कहीं,
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हिन्दु-मुस्लिम  के ई  भाषा, हाँ  हिन्दी  स्वराज वहीं ।
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लिखोॅ  नागरी मेॅ  ई भाषा, आकि  फारसी  लिपिये  मेॅ,
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की अन्तर  हिन्दी  मेॅ आवै, मोती  दोनो सिपिये  मेॅ ।
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पर     साथे-साथे  बतलैलौ श्रेष्ठ  नागरी,  हिन्दी  लेॅ,
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मानसरोवर  रं  ई  सुन्दर, भारत  माय  के  बिन्दी लेॅ ।
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बापू,  तोरे  छेलौं    सपना हिन्दी  दक्खिन,  उत्तर  तक
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लहरैतै  सुन्दर  सुवास  रं, पूरब-पश्चिम  के  घर तक ।
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बापू   तोंही  ई    बतलैलौ, हिन्दी    के  अपमान-अनादर,
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एकरा सेॅ कुछुवोॅ नै कम छै, भारत माय के भटकेॅ दर-दर ।
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देशभक्त ऊ  हुवै  नै  पारेॅ, निजभाषा  सेॅ  नै  छै प्रेम,
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हिन्दी ही  पूछेॅ  पारेॅ  छै, भारत भर  के  कुशलो क्षेम ।
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जे  हिन्दी  केॅ  तुलसी हेनोॅ महाकवि   छै,  ऊ    भाषा
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ओकरो  कैन्हेंनी भारी होतै, दोनों  पलड़ा  ठो  पासा ।
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‘हिन्दी नवजीवन’  के  ऐवोॅ हिन्दी  तेॅ  प्राण  समान,
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हिन्दी  लेॅ  चिन्ता  बापू के, समाधिस्त योगी रोॅ ध्यान ।
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बापू  तोरोॅ  किंछा    छेलौं हिन्दी लेॅ  मेॅ काॅग्रेस के काज,
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चलेॅ कहूँ नै भारत भर मेॅ अंग्रेजी  भाषा  के  राज ।
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यै लेॅ  बहुत जरूरी  छै कि, सबकेॅ  शिक्षा  हुएॅ  सुलभ,
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माय  के  भाषा  हेनोॅ भाषा, केकरो  लेॅ  छै  नै दुर्लभ ।
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पराधीन  भारत  में     बापू, हिन्दी    लेॅ    सम्बल-दीवार
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भारत नेॅ  देखलकै  तखनी, हिन्दी  के  सुन्दर संसार ।
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हिन्दी  के  उद्धारक  बापू, हिन्दी  केरोॅ  सच्चा  पूत,
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हिन्दी  के  रक्षा लेली तोंय, बनले रहयौ ज्यों  अवधूत ।
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आय  जहाँ  पर  हिन्दी राजै, बापू,  तोरे  पुण्य    प्रसाद,
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तोरे  स्वर  हिन्दी  में गूंजै, हिन्दी के युगव्यापी नाद
  
 
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22:26, 10 जून 2016 के समय का अवतरण

पराधीन भारत केॅ तोंही, नया ज्ञान के मंत्रा सिखैलौ,
शिक्षा मिलेॅ कि हेनोॅ जैसेॅ, रोजगार भी मिलेॅµबतैलौ ।

छुच्छे ज्ञान किताबोॅ केरोॅ, की मानें राखै छै; बेरथ,
शिक्षा वही तेॅ शिक्षा छेकै, सधे घरोॅ के जैसें स्वारथ ।

बापू, तोहें परवश युग केॅ स्वालम्बन के पाठ सिखैलौं,
पराधीन भारत मेॅ बापू, देवदूत रं तोहें ऐलौ ।

शिक्षा केरोॅ पा}जन्य ठो, बाजी उठलै, नाद सघन
अंग्रेजी शिक्षा पर चललै, देशी शिक्षा हन, हन, हन ।

बापू, तोंही तेॅ बतलैलौ, अपनोॅ भाषा केरोॅ मान,
हिन्दी सेॅ ही मुक्ति पैतै, ई सौंसे ठो हिन्दुस्तान ।

हिन्दी के बदला अंग्रेजी, राज करेॅ ई भारत मेॅ,
कौनें विष केॅ घोरी मिलावै, गंगाजल के अक्षत मेॅ ।

अपने भाषा में शिक्षा सेॅ, भारत केॅ मिलतै स्वराज,
झपटै भारत के भाषा पर, अंग्रेजी के खूनी बाज ।

रोकै लेॅ पड़तै जल्दी सेॅ, अंग्रेजी के चाल चलन,
की स्वराज मिलतै बिन एकरोॅ ई विदेशी के बिना दलन?

बापू ई तोहीं बतलैलौ, शिक्षाओ सेॅ बड़ोॅ, चरित्रा
सतचरित्रा ही नर के भूषण, यही बंधु आ स्वजन-मित्रा ।

हिन्दी आय जहां पर शोभै, बापू तोरे मन के मोॅन,
बनलोॅ छै सौंसे भारत के गुप्त खजाना; मिललोॅ धोॅन ।

बापू तोरोॅ राष्टप्रेम के छटा निखरलोॅ सब्भे ओर,
भू, जन, भाषा; जहां अन्हरिया, वहीं-वहीं पर तोहें भोर ।
 
के बोलै छै तोरा नफरत अंग्रेजी सेॅ छेलौं घोर ?
तोहें तेॅ देखौ छेलौ बस, हिन्दी सेॅ ही होतै भोर ।

हिन्दी-हिन्दुस्तानी में तेॅ कुछुवो नै छै भेद कहीं,
हिन्दु-मुस्लिम के ई भाषा, हाँ हिन्दी स्वराज वहीं ।

लिखोॅ नागरी मेॅ ई भाषा, आकि फारसी लिपिये मेॅ,
की अन्तर हिन्दी मेॅ आवै, मोती दोनो सिपिये मेॅ ।

पर साथे-साथे बतलैलौ श्रेष्ठ नागरी, हिन्दी लेॅ,
मानसरोवर रं ई सुन्दर, भारत माय के बिन्दी लेॅ ।

बापू, तोरे छेलौं सपना हिन्दी दक्खिन, उत्तर तक
लहरैतै सुन्दर सुवास रं, पूरब-पश्चिम के घर तक ।

बापू तोंही ई बतलैलौ, हिन्दी के अपमान-अनादर,
एकरा सेॅ कुछुवोॅ नै कम छै, भारत माय के भटकेॅ दर-दर ।

देशभक्त ऊ हुवै नै पारेॅ, निजभाषा सेॅ नै छै प्रेम,
हिन्दी ही पूछेॅ पारेॅ छै, भारत भर के कुशलो क्षेम ।

जे हिन्दी केॅ तुलसी हेनोॅ महाकवि छै, ऊ भाषा
ओकरो कैन्हेंनी भारी होतै, दोनों पलड़ा ठो पासा ।

‘हिन्दी नवजीवन’ के ऐवोॅ हिन्दी तेॅ प्राण समान,
हिन्दी लेॅ चिन्ता बापू के, समाधिस्त योगी रोॅ ध्यान ।

बापू तोरोॅ किंछा छेलौं हिन्दी लेॅ मेॅ काॅग्रेस के काज,
चलेॅ कहूँ नै भारत भर मेॅ अंग्रेजी भाषा के राज ।

यै लेॅ बहुत जरूरी छै कि, सबकेॅ शिक्षा हुएॅ सुलभ,
माय के भाषा हेनोॅ भाषा, केकरो लेॅ छै नै दुर्लभ ।

पराधीन भारत में बापू, हिन्दी लेॅ सम्बल-दीवार
भारत नेॅ देखलकै तखनी, हिन्दी के सुन्दर संसार ।

हिन्दी के उद्धारक बापू, हिन्दी केरोॅ सच्चा पूत,
हिन्दी के रक्षा लेली तोंय, बनले रहयौ ज्यों अवधूत ।

आय जहाँ पर हिन्दी राजै, बापू, तोरे पुण्य प्रसाद,
तोरे स्वर हिन्दी में गूंजै, हिन्दी के युगव्यापी नाद ।